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जैसे औरत पैदा नहीं होती - बनाई जाती है, वैसे ही कोई लड़की बारबाला होती नहीं है, बनाई जाती है। वह परिस्थितियों द्वारा बुरी तरह धुन दिए जाने के बाद ही इस विकल्प को चुनती है और यथार्थ से सामना होने के बाद पाती है कि वास्तविकता उससे कहीं ज्यादा बीहड़ है जितने की उसने उम्मीद की थी। यह दुख भरी आत्मकथा मुंबई की एक ऐसी ही बारबाला की है, जिसे बचपन से ही यौन शोषण का शिकार होना पड़ा था। वैवाहिक जीवन उसके लिए और ज्यादा आतंककारी साबित हुआ। जब उसने जीविका की तलाश में बारबालाओं की ऊपर से रंगीन, पर भीतर से सड़ी हुई और बदबूदार दुनिया में प्रवेश किया, तो वहाँ उसे जो हैरतअंगेज अनुभव हुए, उनका बयान करते हुए आत्मकथा लेखक वैशाली हळदणकर की उँगलियाँ काँप-काँप उठती हैं। यह सिर्फ एक अकेली बारवाला की आपबीती नहीं है, उन हजारों अभागी लड़कियों की दास्तान है जिन्हें रोजी-रोटी के लिए शोषण, दमन और यातना का निरंतर शिकार होना पड़ता है। अपने स्वाभिमान और स्वायत्तता को तरह-तरह से कुचला जाता देख कर वे कभी शराब की ओर मुड़ती हैं तो कभी ड्रग्स की ओर । पुस्तक की भूमिका में महाराष्ट्र की सामाजिक कार्यकर्ता तथा बारबालाओं की यूनियन बनानेवाली वर्षा काळे ने इस उद्योग का परत-दर-परत विश्लेषण किया है, जिससे बारबालाओं की स्थिति को एक व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखने की रोशनी मिलती है।

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वैशाली हळदणकर (Vaishali Haldankar)

"अपने ढंग की पहली और अभी तक एकमात्र, इस आत्मकथा की लेखिका वैशाली हळदणकर की यह पहली पुस्तक है। उनका जन्म 1 जुलाई 1967 को हुआ था। परिवार का वातावरण संगीत की साधना से सराबोर था, पर अभाव और कंगाली भी कम नहीं थी। बीस वर्ष की उम्र में वे बारबाला बनीं और लगभग सत्तरह साल तक मुंबई के करीब डेढ़ सौ बारों में काम किया। इस दौरान उन्हें दिल हिला देनेवाले अनुभव हुए। जब महाराष्ट्र सरकार ने बार डांस पर प्रतिबंध लगा दिया, उन्हीं उथल-पुथल भरे दिनों में उनकी मुलाकात सामाजिक कार्यकर्ता वर्षा काळे से हुई । वर्षा की प्रेरणा से वे बारबालाओं के संघर्ष और संगठन से जुड़ीं तथा पढ़ाई-लिखाई की दुनिया में वापस आईं। अपनी आपबीती लिखते हुए ही उन्होंने बीए का इम्तहान पास किया। उनकी यह कृति इस तथ्य का विश्वसनीय प्रमाण है कि जब सच में ताकत होती है, तो भाषा में अपने आप ऊर्जा, प्रवाह और खिंचाव आ जाता है। मूलतः मराठी भाषा में लिखित 'बारबाला' का अनुवाद कवि तथा समीक्षक पद्मजा घोरपड़े ने किया है। हिन्दी साहित्य के कई क्षेत्रों में इनका काम जाना-माना है तथा रचनात्मक लेखन के लिए इन्हें अनेक साहित्यिक पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।"

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