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Bass Bahut Ho Chuka

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"समीक्षकों की नज़र में वाल्मीकि की कविताएँ - हिन्दी दलित साहित्य की चर्चित एवं बहुप्रशंसित कृति दलित जीवन के दाहक-अनुभवों, संघर्षों की सशक्त अभिव्यक्ति । जिसे पाठकों ने ही नहीं समीक्षकों, आलोचकों, विद्वानों ने दलित-चेतना की महत्त्वपूर्ण कृति माना । 'सदियों का सन्ताप' काव्य पुस्तक बहुत छोटी है, परन्तु गुणात्मक दृष्टि से अभिव्यक्ति में बेहद सशक्त है। - डॉ. धर्मवीर ★★★ संग्रह की हर कविता मेरा बयान लगती है। मेरी पीड़ा और प्रश्न इन कविताओं में दिखायी दिये। - शरणकुमार लिंबाले ★★★ संग्रह की कविताएँ पढ़कर लगा कि हिन्दी कविता मर गयी थी, वह जन्म ले रही है। - डॉ. मस्तराम कपूर ★★★ सचमुच संग्रह की कविताएँ ज्वालामुखी बनकर सदियों का सन्ताप उगल रही हैं और एक नयी सोच को जन्म दे रही हैं। - डॉ. श्याम सिंह शशि ★★★ कविताओं में भावाकुलता है और शब्द तथा भावना को एकाकार कर सकने की दुर्धर्ष जिजीविषा । - बटरोही ★★★ कविताएँ मुझे बहुत सार्थक लगीं। शिल्प और कथ्य दोनों भाये। - अजीत पुष्कल ★★★ कविताओं ने इतने प्रश्न दिये कि हाथ मलने और हतप्रभ रह जाने के सिवा कुछ नहीं कर सका। दर्द का सैलाब हैं ये कविताएँ। - डॉ. प्रतीक मिश्र ★★★ आज शब्द और भाषा अपनी पहचान खो चुके मुझे प्रतिशब्द की पहचान की आहट मिली है। हैं। इन रचनाओं में - मालती शर्मा ★★★ संग्रह की प्रत्येक कविता सामाजिक परिवर्तन की जिजीविषा को सशक्त अभिव्यक्ति देती है। - प्रेमचन्द गाँधी ★★★ कविताओं में बड़ी आग है। आग चूल्हे की हो या कविता की, ऊष्मा ही नहीं ऊर्जा भी देती है। -डॉ. हनुमन्त नायडू ★★★ संग्रह की कविताएँ दलितों की सदियों की सन्तप्तता को उसकी तिक्तता के साथ कभी सीधे और कभी प्रतीकात्मक रूप से संप्रेषित करती हैं। - कृष्ण शलभ"
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Bass Bahut Ho Chuka
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ओमप्रकाश वाल्मीकि (Omprakash Valmiki)

"ओमप्रकाश वाल्मीकि - जन्म : 30 जून, 1950, बरला, मुजफ्फरनगर (उत्तर प्रदेश)। शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी)। प्रकाशित कृतियाँ : सदियों का सन्ताप, बस्स! बहुत हो चुका (कविता-संग्रह); जूठन (आत्मकथा); सलाम, घुसपैठिये, छतरी, मेरी प्रतिनिधि कहानियाँ (कहानी-संग्रह); दलित साहित्य का सौन्दर्य शास्त्र (आलोचना); मुख्यधारा और दलित साहित्य। सफाई देवता (वाल्मीकि समाज की ऐतिहासिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि); दो चेहरे (नाटक); क्यों मैं हिन्दू नहीं हूँ (कांचा एलैय्या) पुस्तक का अंग्रेज़ी से हिन्दी अनुवाद, सायरन का शहर (अरुण काले) कविता-संग्रह का मराठी से हिन्दी अनुवाद। प्रज्ञा-साहित्य के दलित-विशेषांक का अतिथि सम्पादन। विभिन्न भाषाओं में रचनाएँ अनूदित । आत्मकथा जूठन अंग्रेज़ी एवं पंजाबी में अनूदित । नाटकों में भी रुचि; 60 नाटकों में अभिनय और निर्देशन । सम्मान : 'डॉ. अम्बेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार' 1993; 'परिवेश सम्मान' 1995; 'जयश्री सम्मान' 1996; 'कथाक्रम सम्मान' 2001; 'न्यू इंडिया बुक प्राइज' 2004; 'साहित्य भूषण सम्मान' 2006; उत्तर प्रदेश, हिन्दी संस्थान लखनऊ। 'आठवाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन सम्मान' 2007, न्यूयार्क, अमेरिका । देहावसान : 17 नवम्बर, 2013"

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