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"कथाकार राजेन्द्र लहरिया का यह उपन्यास बयाबाँ, मनुष्य-समय-समाज के उस निर्मम 'अरण्य' का आख्यान है जो उत्तर- आधुनिकता की कोख से पैदा हुआ है। यह उपन्यास अपने विशिष्ट कथ्य के साथ ही अपने अनूठे शिल्प के कारण भी ध्यान आकृष्ट करता है। 'टूट' और 'दाह' नाम के दो भागों में विभक्त इस उपन्यास की कथा में कथ्य को जिस कारीगरी के साथ विन्यस्त किया गया है, उसके कारण यह उपन्यास वर्तमान ही नहीं भविष्य की भयावहता को भी दृश्यांकित कर पाने में सक्षम हो पाता है। (ग़ौरतलब है कि इस नातिदीर्घ उपन्यास में इक्कीसवीं सदी की शुरुआत से सन् 2070 ईसवी तक की हौलनाक-दुर्निवार मनुष्य-स्थितियों का जायज़ा मौजूद है।) यही कारण है कि पाठक इस उपन्यास को पढ़ते हुए जब इसके अन्त तक पहुँचता है तो वह हैरान हो उठने के साथ-साथ अपने सामने स्थितियों की विकरालता को दृश्यमान पाता है। एक अत्यन्त पठनीय, विचारोत्तेजक व मर्मस्पर्शी कथा-कृति ! "
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राजेन्द्र लहरिया (Rajendra Lahariya)

"राजेन्द्र लहरिया -जन्म : 18 सितम्बर, 1955 ई. को, मध्य प्रदेश के ग्वालियर ज़िले के सुपावली गाँव में।शिक्षा : स्नातकोत्तर (हिन्दी साहित्य) ।प्रकाशित कृतियाँ : कहानी-संग्रह : आदमी बाज़ार(1995), यहाँ कुछ लोग थे (2003), बरअक्स (2005), युद्धकाल (2008), सियासत (तीन आख्यान) (2018);लघु उपन्यास : राक्षसगाथा (1995), जगदीपजी की उत्तरकथा (2010), यक्षप्रश्न-त्रासान्त (2015), अग्नि-बीज (2018), अन्धकूप (2019); उपन्यास : आलाप-विलाप (2011), यातनाघर (2015), लोकलीला (2017), समय-रथ के घोड़े (2019), द डार्क थियेटर (2021);आत्म-आख्यान : मेरी लेखकीय अन्तर्यात्रा (2016);कथा-संचयन : राजेन्द्र लहरिया की चुनिन्दा-चर्चित कहानियाँ (2022), चुनिन्दा कहानियाँ (2023) ।बीसवीं शताब्दी के नौवें दशक में कथा-लेखन की शुरुआत करने वाले प्रमुख कथाकारों में शुमार। तब से अद्यावधि निरन्तर रचनारत • हिन्दी साहित्य की प्रायः सभी महत्त्वपूर्ण पत्रिकाओं में कहानियाँ प्रकाशित अनेक कहानियाँ महत्त्वपूर्ण कहानी-संकलनों में संकलित कई कथा-रचनाओं का मलयालम, उर्दू, ओड़िया, मराठी, पंजाबी आदि भारतीय भाषाओं एवं अँग्रेज़ी भाषा में अनुवाद लेखन के साथ-साथ, गाहेबगाहे चित्रांकन भी करते हैं। ई-मेल : lahariya_rajendra@yahoo.com"

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