बीसवीं शताब्दी का हिन्दी नाटक और रंगमंच - बीसवीं शताब्दी का हिन्दी रंगमंच अनेक हलचलों, आन्दोलनों और अन्वेषणजन्य नये-नये प्रयोगों से भरा हुआ है। यह इतना बृहद् और विविधता लिये है कि पूरी शताब्दी के नाटक और रंगमंच दोनों का समग्र आकलन एक चुनौती बन गया है। लेखिका ने रंगकर्म के अनुभवों, साहित्य और रंगमंच के आन्तरिक सम्बन्धों की सूक्ष्म समझ और नाट्यालोचन की व्यापक दृष्टि के साथ बीसवीं शताब्दी की नाट्य-उपलब्धियों और अन्तविरोधों को एक साथ जाँचा-परखा है। प्रसिद्ध नाट्यचिन्तक और रंगकर्मी गिरीश रस्तोगी की प्रस्तुत कृति 'बीसवीं शताब्दी का हिन्दी नाटक और रंगमंच' एक स्पष्ट, सन्तुलित, प्रखर नाट्य-दृष्टि के साथ सर्जनात्मक समीक्षा का श्रेष्ठ उदाहरण है। यह कृति निस्सन्देह, हिन्दी नाटक और रंगमंच के प्रेमियों और शोधकर्ताओं की अपेक्षाओं को पूरा करती है।
प्रो. गिरीश रस्तोगी
जन्म: 12 जुलाई, 1935 शिक्षा: एम.ए., एम.एड., पी-एच.डी.
गतिविधियाँ भूतपूर्व प्रोफेसर एवं अध्यक्ष : : हिन्दी विभाग, गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर। ब्रिस्टल स्कूल ऑफ ड्रामा, लन्दन, बेल्जियम, फ्रान्स, इटली, स्विट्जरलैण्ड, रोम की सफल यात्राएँ।
प्रकाशित कृतियाँ : हिन्दी नाटक का आत्म संघर्ष, नहुष, छायावन, अपने हाथ बिकानी।
पुरस्कार : उ.प्र. हिन्दी संस्थान द्वारा 'नहुष' पर महादेवी वर्मा पुरस्कार (1989), 'आचार्य रामचन्द्र शुक्ल पुरस्कार (1992), 'हिन्दी नाटक और रंगमंच: नयी दिशायें, नये प्रश्न पर उ.प्र. संगीत नाटक अकादमी से उत्कृष्ट निर्देशन के लिए पुरस्कार (1990), हिन्दी भाषा और रंगकर्म के लिए सुभद्राकुमारी चौहान पुरस्कार (1994)।
यात्राएँ : ब्रिस्टल स्कूल ऑफ ड्रामा लंदन, बेल्जियम, फ्रांस, इटली, स्विट्जरलैण्ड, रोम।
निधन : : 16 जनवरी 2015