बेगाने अपने
बेगाने अपने -
वरिष्ठ साहित्यकार विष्णुचन्द्र शर्मा का ताजा उपन्यास है - बेगाने अपने जो साम्राज्यवाद के अपने ही घर की टूटन और आपसी बेगानगी एकाकीपन की खोजी दृष्टि से अंकन करता है। अमरीका में जा बसे भारतीय हो, या दूसरे देश के नागरिक अथवा अमरीकीवासी हर पात्र का अपना इन्द्र है, संघर्ष है। सारे चातुर्य और कुटिलता के बावजूद अमरीका के नागरिक हताश और निराश है। उपन्यास का यह उद्धरण समूची अमरीका की पूरी सच्चाई बयान कर देता है: "यहाँ न्यूयार्क में हरेक को यह निजी समस्या है। इस समाज में व्यक्ति के लिए सिमट जाना आवश्यक है। 'सिमटे तो दिले-आशिक, फैले तो ज़माना है।' यहाँ फैलाव नहीं है। यहाँ सिमटा हुआ आशिक बढ़ा भी है, युवा भी है। बस पर सब-वे में, सड़क पर तुम्हें ऐसे चेहरे मिल जायेंगे, जो जीवन निर्वाह के लिए सिमट गये हैं। यह डर का सिमटना भी है। बड़ क्लेयर का भाई है, वह डरकर एबनार्मल होता जा रहा। है। क्लेयर डरकर धन कमाने के लिए जान दे देती है। एक दृष्टिकोण से यह निष्ठुरता है। अपने को मारने की निष्ठुर प्रक्रिया है मित्र। यहाँ की सभ्यता के दो दरवाज़े हैं, एक दरवाज़ा साइकिक के पास ले जाता है। दूसरा दरवाज़ा अध्यात्म की दुकानों में व्यक्ति को पहुँचा देता है।"