Publisher:
Vani Prakashan

Bhagwa Dhwaj

In stock
Only %1 left
SKU
Bhagwa Dhwaj
Rating:
0%
As low as ₹308.75 Regular Price ₹325.00
Save 5%
"रंग से विमुखता अन्धकार है, निराशा है । जहाँ पराजय है, वहाँ रंग नहीं है । वहाँ उम्मीद की किरणें नहीं उगतीं । उम्मीद का अपना रंग होता है। उसकी पहचान होती है । रोशनी का सफ़ेद और पीला रंग किरणों का रंग है । वही पीलापन इस धरती के अंग-अंग में समाया है । लेकिन जब तुलसी और पीपल का पौधा वृक्ष बनता है तो हरीतिमा का संचार पूरे वातावरण में हो जाता है। एक पौधा और बूढ़ा पेड़ का रंग अलग होता है। जीवन में मन के विभिन्न रंग हैं। ये रंग मनोदशा के अनुसार बदलते हैं । कोई प्यार का रंग है, तो कोई शान्ति का । कोई सृजन का रंग है, तो कोई शौर्य एवं त्याग का । भारतीय जीवन में भगवा रंग को विशेष स्थान दिया गया है । भगवा रंग त्याग, ज्ञान, पवित्रता और तेज का प्रतीक है। यज्ञ की ज्वाला से निकली अग्नि शिखाओं के लिए केसरिया रंग है । यही भगवा रंग कई बार देश की ख़ातिर केसरिया बाना में बदल जाता है । इसे ही वेदों में अरुणाः सन्तु केतवः कहा गया है, जहाँ ध्वज का रंग हल्दी जैसे रंग का होता है । आदिकाल के सभी चक्रवर्ती राजाओं, सम्राटों, महाराजाओं, धर्मगुरुओं और सेनानायकों का ध्वज भगवा ही रहा था। राजा रघु हो या राम, अर्जुन हो या चन्द्रगुप्त या वर्तमान में महाराणा प्रताप, शिवाजी या गुरुगोविन्द सिंह, सभी ने इसी ध्वज के तले धर्म की रक्षा के लिए संघर्ष किया । आश्रम-यज्ञशाला में जब देश एवं समाज निर्माण का कार्य किया जा रहा था, तब ऋषियों-तपस्वियों ने इसी भगवा ध्वज के तले देश के नौनिहालों को भारतवर्ष की विजयी गाथा सुनायी । आज़ादी के संघर्ष के दौरान जब भारतीय क्रान्तिकारी देश से बाहर गये तो वहाँ फ़्रांस, इटली की क्रान्ति गाथाएँ सुनीं। वहाँ भी ध्वज की परिकल्पना की गयी, तो भगवा को विशेष स्थान दिया गया। हमारा तिरंगा झण्डा भी उसी भगवा ध्वज का प्रतिनिधित्व करता है, जो हज़ारों वर्ष तक भारतीय जीवन के पराक्रम एवं पौरुष का साक्षी रहा है। - पुस्तक की भूमिका से"
ISBN
Bhagwa Dhwaj
Publisher:
Vani Prakashan
More Information
Publication Vani Prakashan
डॉ. मयंक मुरारी (Dr. Mayank Murari)

"डॉ. मयंक मुरारी आधुनिक समय में भारतीय समाज तथा जीवन, इतिहास, परम्परा और दर्शन विषय पर लिखते हैं। अपने 30 सालों के सार्वजनिक जीवन में अख़बारों एवं पत्रिकाओं में अब तक 600 से अधिक आलेख और एक दर्जन किताबें लिख चुके हैं, जिनमें मानववाद एवं राजव्यवस्था, राजनीति एवं प्रशासन, भारत-एक सनातन राष्ट्र, माई-एक जीवनी, झारखण्ड के अनजाने खेल, झारखण्ड की लोक कथाएँ, लोक जीवन (पहचान, परम्परा और प्रतिमान), यात्रा बीच ठहरे क़दम (काव्य-संग्रह), ओ जीवन के शाश्वत साथी, पुरुषोत्तम की पदयात्रा, अच्छाई की खोज, भगवा ध्वज, जंबूद्वीपे भरतखण्डे आदि शामिल हैं। उन्होंने ग्रामीण विकास, प्रबन्धन, जनसम्पर्क एवं पत्रकारिता के अलावा राजनीति शास्त्र में उच्च शिक्षा, स्नातक एवं स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त करने के बाद विकास के वैकल्पिक माध्यम पर पीएच.डी. किया। उनके कार्यों एवं योगदान के लिए 'विद्यावाचस्पति', 'सिद्धनाथ कुमार स्मृति सम्मान', ‘झारखण्ड रत्न’, ‘जयशंकर प्रसाद स्मृति सम्मान', 'साहित्य अकादमी रामदयाल मुंडा कथेतर सम्मान', लायंस क्लब ऑफ़ राँची की ओर से समाज सेवा के लिए अन्य संस्थाओं के द्वारा कई सम्मान एवं पुरस्कार दिये गये हैं। व्यक्तित्व विकास, प्रेरणा और संवाद के अलावा भारतीय परम्परा एवं जीवन पर विभिन्न विद्यालय एवं संस्थान में व्याख्यान देते हैं। इसके अलावा उनका आध्यात्मिक और भारतीय दर्शन पर आधारित आलेख देश के सभी प्रतिष्ठित समाचार पत्रों में नियमित रूप से प्रकाशित होता है। पता : राँची, झारखण्ड "

Write Your Own Review
You're reviewing:Bhagwa Dhwaj
Your Rating
कॉपीराइट © 2025 वाणी प्रकाशन पुस्तकें। सर्वाधिकार सुरक्षित।

Design & Developed by: https://octagontechs.com/