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Bhaktikavya Aur Lokjeevan

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सम्पूर्ण भक्तिकाव्य को मार्क्सवादी दृष्टि से इतनी समग्रता में विश्लेषित-विवेचित करने वाली हिन्दी की सम्भवतः यह पहली पुस्तक है। इसमें भक्तिकाव्य के जीवन्त और मृत तत्त्वों को अलगाया गया है और कहा गया है कि उसके जीवन्त तत्त्व हमारे आज के जीवन के लिए भी सार्थक और प्रेरक हैं। इसके विपरीत उसके रूढ़ तत्त्वों का इस्तेमाल और प्रचार अध्यापकों का वह तबका करता है जो प्रतिगामी और पुनरुत्थानवादी है। इसके विपरीत भक्तिकाव्य का एक पक्ष लोकवादी और प्रगतिशील है। इसकी चर्चा कम होती है या नहीं होती है। लेखक के ही शब्दों में, 'भक्तिकाव्य को मैंने ग्रहण किया है उस स्तर पर जिसकी या तो घोर भौतिकता में डूबे उसके भजनपूजनवादी प्रशंसक चर्चा नहीं करते या औपचारिकतावश चर्चा करते भी हैं तो वह उन्हें अपने ऊपर ही व्यंग्य मालूम देती है ।'
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शिवकुमार मिश्र (शिवकुमार मिश्र)

शिवकुमार मिश्र

जन्म : 2 फरवरी, 1931; कानपुर (उ.प्र.)।

शिक्षा : एम.ए. तक की शिक्षा, कानपुर में। पीएच.डी. तथा डी.लिट्. सागर विश्वविद्यालय, सागर, म.प्र. से।

कार्य : सन् 1959 से सन् 1977 तक सागर विश्वविद्यालय में तथा उसके उपरान्त 1991 ई. तक सरदार पटेल विश्वविद्यालय, वल्लभ विद्यानगर (गुजरात) में अध्यापन। भारत सरकार की सांस्कृतिक आदान-प्रदान योजना के तहत 1991 ई. में 15 दिन की सोवियत यूनियन की सांस्कृतिक यात्रा।

जनवादी लेखक संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे।

प्रमुख कृतियाँ : ‘नया हिन्दी काव्य’, ‘प्रगतिवाद’, ‘मार्क्सवादी साहित्य-चिन्तन’, ‘यथार्थवाद’, ‘प्रेमचंद : विरासत का सवाल’, ‘आचार्य शुक्ल और हिन्दी आलोचना की परम्परा’, ‘भक्ति आन्दोलन और भक्ति काव्य’, ‘मार्क्सवाद देवमूर्तियाँ नहीं गढ़ता’, ‘आधुनिक कविता और युग-सन्दर्भ’, ‘इतिहास, साहित्य और संस्कृति’ सहित साहित्य-समीक्षा से सम्बन्धित कई पुस्तकों का लेखन। साहित्य-समीक्षा से सम्बन्धित आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी की चार पुस्तकों तथा विदेशी लेखकों की चार पुस्तकों का सम्पादन-पुनःप्रस्तुति।

पुरस्कार : ‘मार्क्सवादी साहित्य-चिन्तन’ पुस्तक पर सन् 1975 ई. में ‘सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड’।

निधन : 21 जून, 2013

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