इस प्राचीनतम या कालातीत देश के ध्यान और सपने में गुँथी हुई हैं असंख्य स्मृतियाँ । इस अमरभूमि ने याद रखा है बोधिवृक्ष को; रक्तरंजित तलवार के वार से हुई अनगिनत मृत्युओं को; छप्पर उघड़े घर में भूखे पेट जीवन के आवाहन को; शान्त पर्वत पर ध्यानमग्न ऋषियों को। इसने याद रखा है सारे स्नेह, सारी शत्रुता, सारी रुलाई, सारी मुस्कानों को; सारी शून्यताओं और परिपूर्णताओं को भी ।
जब से कवि ने होश सँभाला है, इस धरती को प्यार किया है। इसी धरती की ही तो वह गमकती माटी है जिसपर झरते रहते हैं तारे। वही माटी, जिसकी गोद में हवा झूला झुलाती है शस्यश्यामल क्षेत्र को; जिसे मौसमी बादलों ने आसमान के साथ गहरे तक जोड़ दिया है। यह कवि जीता रहा है उसी के स्वर्ग में, मरता रहा है उसी के नर्क में। यही उसकी सबसे घनिष्ठ प्रियतमा है, सबसे अन्तरंग शत्रु है ।...
सौन्दर्य और प्रेम की त्रिवेणी से भरी तथा शब्दों और चित्रों से सज्जित ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित ओड़िया कवि सीताकान्त महापात्र की यह काव्यकृति समर्पित है हिन्दी पाठकों को, जो जानते हैं कि सुन्दर कृतियों को कैसे प्यार किया जाता है।
सीताकान्त महापात्र
जन्म : सन् 1937, ओडिशा में। उत्कल, इलाहाबाद तथा कैम्ब्रिज विश्वविद्यालयों में शिक्षा।
1975-77 में होमी भाभा फ़ेलोशिप पाकर सामाजिक नेतृत्व विज्ञान में डॉक्टरेट की उपाधि। 1961 से भारतीय प्रशासनिक सेवा से सम्बद्ध रहे। ओडिशा सरकार तथा केन्द्र सरकार में विभिन्न पदों पर कार्यरत रहे तो यूनेस्को में भी काम किया।
प्रमुख कृतियाँ : अब तक ओड़िया भाषा में सत्रह काव्य-संग्रह तथा आलोचनात्मक निबन्धों के छह संग्रह प्रकाशित। अधिकांश रचनाएँ अन्य भारतीय भाषाओं के अलावा अंग्रेज़ी, स्पेनिश, फ़्रेंच, जर्मन, रूसी, स्वीडिश आदि विदेशी भाषाओं में अनूदित व प्रकाशित।
राष्ट्रपति द्वारा ‘पद्मभूषण’ एवं ‘पद्मविभूषण’ से अलंकृत। 1993 के ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ के अलावा ‘कबीर सम्मान’, ‘केन्द्रीय साहित्य अकादेमी पुरस्कार’, ‘सारला पुरस्कार’, ‘कुमारन आशन पोयट्री पुरस्कार’, ‘ओडिशा साहित्य अकादेमी पुरस्कार’, ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’, ‘विषुव सम्मान’ सहित अनेक पुरस्कारों से सम्मानित।