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भारतीय समाज में प्रतिरोध की परम्परा

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प्रस्तुत पुस्तक में भारतीय समाज और संस्कृति के अतीत तथा वर्तमान में मौजूद प्रतिरोध की प्रवृत्तियों और प्रक्रियाओं की खोज, पहचान और व्याख्या की कोशिश है। पुस्तक के आरम्भ में संस्कृति के समाजशास्त्र के स्वरूप का विवेचन है और बाद में भारतीय संस्कृति के अतीत और वर्तमान में मौजूद द्वन्द्वों की पहचान है। इन द्वन्द्वों के बीच से ही उभरती है प्रतिरोध की प्रक्रिया। आधुनिक भारत में सभ्यताओं के बीच संघर्ष का जो महाभारत विगत दो सदियों से साम्प्रदायिकता के रूप में चल रहा है उसका कुरुक्षेत्र भारतीय इतिहास का मध्यकाल है। उस मध्यकाल में दो सभ्यताओं, संस्कृतियों और धर्मों का टकराव था तो दोनों के मेल से एक प्रकार का सांस्कृतिक संगम भी निर्मित हो रहा था, जिसकी अभिव्यक्ति कविता, संगीत, चित्राकला और स्थापत्य में हो रही थी। उसी सांस्कृतिक संगम की खोज पुस्तक के दूसरे निबन्ध में है। भारतीय समाज में स्त्री की पराधीनता जितनी पुरानी और सर्वग्रासी है उतनी ही पुरानी है उसके विरुद्ध विद्रोह और प्रतिरोध की परम्परा। इस परम्परा का एक उज्ज्वल नक्षत्र है महादेवी वर्मा की पुस्तक ‘शृंखला की कड़ियाँ’, जिसके महत्त्व का मूल्यांकन इस पुस्तक में किया गया है। पुस्तक में दो निबन्ध भूमण्डलीकृत भारत में किसानों की तबाही और बर्बादी से सम्बन्धित हैं। बाद के चार निबन्धों में महात्मा गाँधी के चिन्तन और लेखन का मूल्यांकन है और साथ में स्वराज्य तथा लोकतन्त्र सम्बन्धी उनके विचारों का विवेचन भी। पुस्तक के अन्तिम निबन्ध ‘आज का समय और मार्क्सवाद’ में मार्क्सवाद से जुड़े संकटों और सवालों पर भी लेखक द्वारा विचार किया गया है। आशा है कि पाठकों को भारतीय समाज और संस्कृति में मौजूद प्रतिरोध की परम्परा की चेतना और प्रेरणा इस पुस्तक से मिलेगी।

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9789350725597
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Vani Prakashan
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मैनेजर पाण्डेय (Manager Pandey)

मैनेजर पाण्डेय

जन्म : 23 सितम्बर, 1941 को बिहार प्रान्त के वर्तमान गोपालगंज जनपद के एक गाँव ‘लोहटी’ में हुआ।

शिक्षा : आरम्भिक शिक्षा गाँव में तथा उच्च शिक्षा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में हुई, जहाँ से उन्होंने एम.ए. और पी-एच.डी. की उपाधियाँ प्राप्त कीं।

प्रमुख कृतियाँ : ‘शब्द और कर्म’, ‘साहित्य और इतिहास दृष्टि’, ‘साहित्य के समाजशास्त्र की भूमिका’, ‘भक्ति आन्दोलन और सूरदास का काव्य’, ‘अनभै साँचा’, ‘आलोचना की सामाजिकता’, ‘संकट के बावजूद’ (अनुवाद, चयन और सम्पादन) ‘देश की बात’ (सखाराम गणेश देउस्कर की प्रसिद्ध बांग्ला पुस्तक ‘देशेर कथा’ के हिन्दी अनुवाद की लम्बी भूमिका के साथ प्रस्तुति), ‘मुक्ति की पुकार’ (सम्पादन), ‘सीवान की कविता’ (सम्पादन)।

सम्मान : हिन्दी अकादमी द्वारा दिल्ली का ‘शलाका सम्मान’, ‘साहित्यकार सम्मान’, ‘राष्ट्रीय दिनकर सम्मान’, रामचन्द्र शुक्ल शोध संस्थान, वाराणसी का ‘गोकुल चन्द्र शुक्ल पुरस्कार’ और दक्षिण भारत प्रचार सभा का ‘सुब्रह्मण्य भारती सम्मान’।

मैनेजर पाण्डेय ने हिन्दी में एक ओर ‘साहित्य और इतिहास-दृष्टि’ के माध्यम से साहित्य के बोध, विश्लेषण तथा मूल्यांकन की ऐतिहासिक दृष्टि का विकास किया है तो दूसरी ओर ‘साहित्य के समाजशास्त्र’ के रूप में हिन्दी में साहित्य की समाजशास्त्रीय दृष्टि के विकास की राह बनाई है। उन्होंने भक्त कवि सूरदास के साहित्य की समकालीन सन्दर्भों में व्याख्या कर भक्तियुगीन काव्य की प्रचलित धारणा से अलग एक सर्वथा नई तर्काश्रित प्रासंगिकता सिद्ध की है। हिन्दी में दलित साहित्य और स्त्री स्वतंत्रता के समकालीन प्रश्नों पर बहसें हुई हैं, उनमें पाण्डेय जी की अग्रणी भूमिका को बार-बार रेखांकित किया गया है।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के भाषा संस्थान के भारतीय भाषा केन्द्र से सेवानिवृत्त।

सम्प्रति : स्वतंत्र लेखन।

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