भव - ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित आधुनिक कन्नड़ भाषा के अप्रतिम साहित्यकार प्रो.यू.आर. अनन्तमूर्ति के उपन्यास 'भव' का यह नया संस्करण हिन्दी पाठकों के लिए प्रस्तुत है। अनन्तमूर्ति के समग्र कथा लेखन में एक समाजविज्ञानी चिन्तक की मूल्यपरक सैद्धान्तिक दृढ़ता और कथाकार की सृजनात्मक संश्लिष्टता के बीच तमाम तरह के बहुआयामी संघर्ष विद्यमान हैं। दरअसल, उनकी प्रत्येक कथाकृति में अनेक दृष्टिकोण एक साथ उभरते हैं, जिनका सरलीकरण करके उस पर कोई एकपक्षीय धारणा बनाना असम्भव है। इस दृष्टि से उनका यह उपन्यास 'भव' भी इसका अपवाद नहीं है। जटिल रूपकों और चरित्रों के माध्यम से सिद्धान्त और कला के बीच चलता एक अन्तहीन संघर्ष 'भव' में भी पूरे वैचारिक साहस के साथ उपस्थित है। कहा जा सकता है कि विचार और शिल्प के स्तर पर 'भव' अनन्तमूर्ति की रचना यात्रा का एक नया दिशा-संकेत भी है, साथ ही यह उपन्यास शायद उनकी गतिशील सृजनात्मकता के एक और नये पक्ष का उद्घाटन भी है।
"यू. आर. अनंतमूर्ति
कर्नाटक के शिमोगा जिले के तीर्थतल्ली नगर में 1932 में उनमें अनंतमूर्ति कन्नड़ के ख्यातिप्राप्त उपन्यासकार एवं कहानीकार हैं। मैसूर विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद 1956 से वहीं पर अँग्रेज़ी विभाग में अध्यापन कार्य आरम्भ किया। बाद में बर्मिघम यूनिवर्सिटी (यू.के.) से पी-एच.डी. की उपाधि पायी। 1980 में मैसूर विश्वविद्यालय के अँग्रेज़ी के प्रोफेसर, 1982 में शिवाजी विश्वविद्यालय के तथा 1985 में लोवा (Lowa) विश्वविद्यालय के विजिटिंग प्रोफेसर रहे। 1987 में महात्मा गाँधी विश्वविद्यालय कोट्टयम के उपकुलपति पद पर कार्यरत ।
अनंतमूर्ति की अब तक लगभग 20 कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। इनमें 'संस्कार', 'भारतीपुर', 'अवस्थे' तीन उपन्यास; 'एन्देन्दु मुगियद कथे', 'प्रश्ने', 'एरदु दशकाड कथेगलु' आदि पाँच कथा-संग्रह; 'बावली', 'अज्जन हेगल मेलिन सुक्कुगलु' आदि तीन काव्य-रचनाएँ; ‘अवहने' नाटक; 'प्रज्ञे मत्तु परिसर' आदि पाँच समीक्षा ग्रन्थ प्रमुख हैं।
संघर्षपूर्ण ग्रामीण जीवन पर आधारित उनका उपन्यास 'संस्कार' विभिन्न भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त फ्रेंच, रशन, जर्मन, बुलगेरियन और अँग्रेज़ी आदि विश्व की प्रमुख भाषाओं में भी अनूदित हो चुका है । 1970 में इस पर आधारित कन्नड़ फ़िल्म कथानक की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ घोषित हुई ।