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बिछड़े सभी बारी बारी

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बिछड़े सभी बारी-बारी - 
बांग्ला के विख्यात कथाकार बिमल मित्र की फ़िल्म अभिनेता और निर्देशक-निर्माता गुरुदत्त से मुलाक़ात उनके लोकप्रिय उपन्यास साहब बीवी- गुलाम पर फ़िल्म बनाने के सिलसिले में हुई थी। कुछ ही दिनों में यह सम्बन्ध ऐसी प्रगाढ़ मैत्री में बदल गया कि गुरुदत्त की ट्रेजिक ज़िन्दगी के रेशे-रेशे लेखक के सामने खुलने लगे। यह संस्मरणात्मक पुस्तक इन्हीं हसीन और उदास रेशों से बुनी गयी है। गुरुदत्त द्वारा आत्महत्या कर लेने की ख़बर सुन कर बिमल मित्र के दिमाग़ को तरह-तरह के सवाल मथने लगे : गुरुदत्त की ज़िन्दगी में आख़िर किस चीज़ का अभाव था? वह इतना परेशान क्यों था? वह इतनी पीड़ा क्यों झेल रहा था? वह रात-दर- रात, बिना सोये, यूँ जाग - जाग कर क्यों गुज़ारता था? दुनिया में सुखी होने के लिए इन्सान जिन-जिन चीज़ों की कामना करता है, गुरुदत्त के पास वह सब कुछ था। मान-सम्मान, यश, दौलत, प्रतिष्ठा, सुनाम, सेहत, खूबसूरत बीवी, प्यारे-प्यारे बच्चे उसके जीवन में क्या नहीं था? इसके बावजूद वह किसके लिए बेचैन, छटपटाता रहता था? मानव चरित्र के पारखी और अध्येता बिमल मित्र ने इस अत्यन्त पठनीय पुस्तक में विभिन्न घटनाओं और वृत्तान्तों के बीच से इस पहेली को ही सुलझाने की चेष्टा की है। इस प्रक्रिया में गुरुदत्त की गायिका पत्नी गीतादत्त, गुरुदत्त की ख़ीबसूरत खोज वहीदा रहमान तथा इनके पेचीदा सम्बन्ध ही नहीं, और भी ऐसा बहुत कुछ सामने आता चलता है जिससे बॉलीवुड की अन्दरूनी ज़िन्दगी की विश्वसनीय झाँकियाँ उपलब्ध होती हैं।

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