"कुलदीप कुमार के संग्रह बिन जिया जीवन की एक बड़ी खूबी यही है कि इसमें, इसकी कविता में, रोजमर्रा के जीवन-अनुभवों को, सम्बन्धों को शिद्दत से उकेरा गया है।...याद नहीं पड़ता कि किसी कवि ने हिन्दी में 'मिलने-बिछुड़ने' को इतनी तरह के जीवन-प्रसंगों में व्यक्त किया हो।... ये 'मिलने-बिछुड़ने' की अपूर्व कविताएँ तो हैं ही पर इनकी रेंज बहुत बड़ी है।...इनमें एक ओर 'सामयिक' जीवन है। ‘अपने समय' का, उसकी चिन्ताओं का, गहरा बोध भी है। साथ ही, ऐतिहासिक-पौराणिक पात्रों के प्रसंग से भी मानवीय सम्बन्धों और मर्मों की जाँच-परख है एक कवि की तरह।" -प्रयाग शुक्ल, आउटलुक हिन्दी / “एक अच्छा कवि कभी अपनी वेध्यता (वलनरेबिलिटी) को छुपाता नहीं, उस पर शर्मिन्दा नहीं होता, बल्कि उसे अपनी जगह लेने देता है। कुलदीप युवावस्था से लेकर अब तक की कविताओं में कहीं भी व्यक्ति की इमोशनल इनसिक्योरिटी और उसकी ज़िन्दगी में उसकी भूमिका को बढ़ाकर या घटाकर पेश नहीं करते। उनके काव्य-विवेक की यही खूबी है।" -असद जैदी, समयान्तर
कुलदीप कुमार उत्तर प्रदेश के बिजनौर ज़िले के छोटे-से क़स्बे नगीना में 4 मार्च, 1955 को जन्म। शुरुआती पढ़ाई नगीने के विश्नोई सराय नगरपालिका प्राइमरी स्कूल तथा नजीबाबाद के मूर्तिदेवी सरस्वती इंटरमीडिएट कॉलेज और साहू जैन कॉलेज़ में। एक साल रुड़की विश्वविद्यालय (अब आईआईटी) में इंडस्ट्रियल इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी की। बाद में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में इतिहास और हिन्दी साहित्य का अध्ययन। 1980 से पूर्णकालिक पत्रकार। यूनाइटेड न्यूज़ ऑफ़ इंडिया, दि संडे ऑब्जर्वर, संडे, दि संडे टाइम्स ऑफ़ इंडिया और दि पायोनियर में विभिन्न पदों पर काम किया। दुबई से प्रकाशित होने वाले अंग्रेजी दैनिक गल्फ़ न्यूज़ के लिए दो साल तक एक साप्ताहिक स्तम्भ भी लिखा। विभिन्न हिन्दीअंग्रेज़ी पत्र-पत्रिकाओं में नियमित लेखन। पाँच वर्ष तक दि हिदू में शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रमों की समीक्षा की। मीडिया के माध्यम से संगीत के प्रति योगदान के लिए आईटीसी-म्यूज़िक फ़ोरम की ओर से इंटरनेशनल फ़ाउंडेशन फ़ॉर फ़ाइन आर्ट्स का वर्ष 2011 का पुरस्कार दिया गया।पिछले कई वर्षों से दि हिन्दू और आउटलुक हिदी में पाक्षिक स्तम्भ लिख रहे हैं।