ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे रहने वाली दो स्त्रियों का जीवन-जीवन में उनके खोने-पाने की व्यथा-कथा । स्त्रियाँ जो नदी की तरह ही बहती हुई चली जाती हैं, दूर-देशान्तर अजनबी शहरों, नगरों में। एक छोटे से परिवार के घेरे में बन्दी सुख-दुख झेलतीं और निरन्तर अपने छोड़ आये शहर, नदी-तट, घर की स्मृतियों में डूबती-उतरातीं। फिर जो लहरें उन्हें अपने साथ बहा ले गयी थीं अनजान शहरों के तट पर वही लहरें उन्हें वापस पहुँचा जाती हैं, सालों पहले छोड़े हुए ब्रह्मपुत्र के तट पर पर सब कुछ क्या वैसा ही है? जैसा सालों पहले था इस चले जाने और लौट आने के बीच कितना कुछ बदल जाता है। पुराने सम्बन्ध और सम्बन्धियों को नयी दृष्टि से पहचानना, उन्हें उसी तरह स्वीकारना फिर जीवन के अश्वयम्भावी अन्त की प्रतीक्षा करना-उसे स्वीकारना।
ब्रह्मपुत्र के तट पर बसे बांग्लादेश के एक शहर में जन्मी दो बहनों की कथा-बहनों की जुबानी। सोच और स्वभाव की दृष्टि से एकदम अलग फिर भी जन्मगत स्नेह के बन्धन से बँधी छोटी बहन मरणोपरान्त लीक छोड़कर चलने वाली अपनी बड़ी बहन को समझने की कोशिश करती है। लेखिका ने चार नारी पात्रों के जीवन वृत्तान्त के द्वारा नारीवादी दृष्टिकोण से जीवन को देखने-समझने का प्रयास किया है और पाठकों तक उस दृष्टिकोण को पहुँचाने की कोशिश की है जो आज के सन्दर्भ में जरूरी और सराहनीय है।
कुछ हद तक इस आत्मकथात्मक उपन्यास में अपनी धरती से उखड़ जाने की पीड़ा एक अमूर्त रूप से हर कहीं उपस्थित रहती है। ब्रह्मपुत्र के किनारे बसा हुआ वह बचपन का 'घर' शुरू से आखिर तक साथ-साथ चलता रहता है। जीवन भर एक निर्वासित की पीड़ा को झेलते हुए बूबू का घर पहुँच न पाना, स्वयं उसका पति का घर छोड़ निकल आना और अन्त में घर पहुँच कर देखना कि वह 'घर' कहीं खो गया है- फिर भी उस खोये हुए घर को उसे तपु को लौटाना ही है।
तसलीमा नसरीन तसलीमा नसरीन ने अनगिनत पुरस्कार और सम्मान अर्जित किए हैं, जिनमें शामिल हैं-मुक्त चिन्तन के लिए यूरोपीय संसद द्वारा प्रदत्त-सखारव पुरस्कार; सहिष्णुता और शान्ति प्रचार के लिए यूनेस्को पुरस्कार; फ्रांस सरकार द्वारा मानवाधिकार पुरस्कार; धार्मिक आतंकवाद के ख़िलाफ़ संघर्ष के लिए फ्रांस का एडिट द नान्त पुरस्कार; स्वीडन लेखक संघ का टूखोलस्की पुरस्कार; जर्मनी की मानववादी संस्था का अर्विन फिशर पुरस्कार; संयुक्त राष्ट्र का फ्रीडम नाम रिलिजन फाउण्डेशन से फ्री थॉट हीरोइन पुरस्कार और बेल्जियम के मेंट विश्वविद्यालय से सम्मानित डॉक्टरेट! वे अमेरिका की ह्युमैनिस्ट अकादमी की ह्यूमैनिस्ट लॉरिएट हैं। भारत में दो बार, अपने ‘निर्वाचित कलाम' और 'मेरे बचपन के दिन' के लिए वे ‘आनन्द पुरस्कार' से सम्मानित। तसलीमा की पस्तकें अंग्रेज़ी, फ्रेंच, इतालवी, स्पैनिश. जर्मन समेत दुनिया की तीस भाषाओं में अनूदित हुई हैं। मानववाद, मानवाधिकार, नारी-स्वाधीनता और नास्तिकता जैसे विषयों पर दुनिया के अनगिनत विश्वविद्यालयों के अलावा, इन्होंने विश्वस्तरीय मंचों पर अपने बयान जारी किए हैं। 'अभिव्यक्ति के अधिकार' के समर्थन में, वे समूची दुनिया में, एक आन्दोलन का नाम बन चुकी हैं। कल्लोल चक्रवर्ती अनुवादक का परिचय इक्कीस साल से अमर उजाला के सम्पादकीय पेज पर कार्यरत। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ और पुस्तक समीक्षा प्रकाशित। पाँच साल से तसलीमा नसरीन के लेखों का बांग्ला से हिन्दी में अनुवाद। अंग्रेज़ी से हिन्दी में अनुवाद का कार्य। ई-मेल : kc5068@gmail.com