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बुद्ध वैराग्य

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इस संकलन में सन् 29 से 36 के बीच लिखी कुछ कविताएँ हैं। शुरू की पाँच कविताएँ झाँसी में लिखी गयी थीं। उस समय मैं इण्टरमीडिएट के दूसरे वर्ष का छात्र था। चन्द्रशेखर आजाद के कुछ साथी मेरे मित्र थे, उनमें वैशंपायन मेरे सहपाठी थे। मुझ पर उन लोगों के राजनीतिक विचारों का काफी प्रभाव था। 'हम गोरे हैं। मेरी पहली राजनीतिक कविता है और वह व्यंग्य कविता भी है। 'प्रश्नोत्तर' में क्रान्तिकारी अकेला है पर वह 'साम्य समक्ष असीम विषमता' को दूर करने का स्वप्न देखता है। 29-30 की झाँसी में साम्यवाद की हवा चलने लगी थी। 'समय ज्ञान' में स्वतन्त्रता की जय के साथ साम्यवाद की जय भी है। 'नवयवक शक्ति' में क्रान्तिकारी अकेला नहीं है, वह युवक शक्ति को जगाकर उससे आगे बढ़ने की कहता है। मैंने स्वामी विवेकानन्द के 'कर्मयोग' और 'राजयोग' का अनुवाद किया। ‘राजयोग' में उन्होंने सांख्य दर्शन की व्याख्या की; उसने मुझे बहुत प्रभावित किया। सन 33 में मैंने एक लम्बी-लिखी-'बुद्ध वैराग्य'। सन् 34 में स्वामी विवेकानन्द की दो अंग्रेज़ी कविताओं का अनुवाद मैंने किया-'संन्यासी का गीत' और 'जाग्रत देश से' 'प्रश्नोत्तर', 'बुद्ध वैराग्य; और 'संन्यासी का गीत' में एक सूत्र सामान्य है, युवक मानवता के दुख दूर करने के लिए घर छोड़कर बाहर निकल पड़ते हैं। तीनों में युवक का अन्तर्द्वन्द्व प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से चित्रित है। पर इस सबसे सामाजिक लक्ष्य सिद्ध होता न दिखायी दे रहा था। सन् 34 में मैंने बहुत-सी कविताएँ लिखीं और कई तरह की लिखीं। एक लम्बी कविता लिखी थी 'मेनका' । विश्वामित्र को तपस्या से जो सिद्धि न मिली, वह उसके भंग होने से मिली। मेनका शकुन्तला को जन्म न देती तो कालिदास अपना नाटक किस पर लिखते? न् 34 में कुछ समय तक मैं निराला के साथ रहा। निराला से मैंने कुछ गलत प्रभाव ग्रहण किये थे। इनमें एक है रूमानी स्वप्नशीलता। यह मेरे गीतों में है, 'मेनका' में है। निराला इससे बाहर आ रहे थे, कुछ दिन में मैं भी बाहर आ गया था। दूसरी है संस्कृत बहुल हिन्दी का प्रयोग निराला तत्सम शब्दों का व्यवहार आवश्यकतानुसार, अभिव्यक्ति को समर्थ बनाने के लिए करते थे, मैं मुख्यतः ध्वनि-सौन्दर्य के लिए इस प्रवृत्ति की पराकाष्ठा है 'मेनका' में बानगी के तौर पर उसके प्रारम्भिक और अन्तिम अंश यहाँ दिये जा रहे हैं। मेरी समझ में यह सारा अभ्यास व्यर्थ नहीं गया। सन् 38 में मेरी जो कविताएँ ‘रूपाभ' में छपीं, उनसे 'बुद्ध वैराग्य' आदि की तुलना करने पर अनुभव और अभिव्यक्ति का भेद स्पष्ट हो जायेगा।

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9788170555087
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रामविलास शर्मा (Ramvilas Sharma)

रामविलास शर्मा

जन्म : 10 अक्टूबर, 1912; ग्राम—ऊँचगाँव सानी, ज़िला—उन्नाव (उत्तर प्रदेश)।

शिक्षा : 1932 में बी.ए., 1934 में एम.ए. (अंग्रेज़ी), 1938 में पीएच.डी. (लखनऊ विश्वविद्यालय)।

लखनऊ विश्वविद्यालय के अंग्रेज़ी विभाग में पाँच वर्ष तक अध्यापन-कार्य किया। सन् 1943 से 1971 तक आगरा के बलवन्त राजपूत कॉलेज में अंग्रेज़ी विभाग के अध्यक्ष रहे। बाद में आगरा विश्वविद्यालय के कुलपति के अनुरोध पर के.एम. हिन्दी संस्थान के निदेशक का कार्यभार स्वीकार किया और 1974 में अवकाश लिया।

सन् 1949 से 1953 तक रामविलासजी अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के महामंत्री रहे।

देशभक्ति तथा मार्क्‍सवादी चेतना रामविलास जी की आलोचना का केन्द्र-बिन्दु हैं। उनकी लेखनी से वाल्मीकि तथा कालिदास से लेकर मुक्तिबोध तक की रचनाओं का मूल्यांकन प्रगतिवादी चेतना के आधार पर हुआ। उन्हें न केवल प्रगति-विरोधी हिन्दी-आलोचना की कला एवं साहित्य-विषयक भ्रान्तियों के निवारण का श्रेय है, वरन् स्वयं प्रगतिवादी आलोचना द्वारा उत्पन्न अन्तर्विरोधों के उन्मूलन का गौरव भी प्राप्त है।

सम्मान : ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ तथा हिन्दी अकादेमी, दिल्ली का ‘शताब्दी सम्मान’।

निधन : 30 मई, 2000

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