चैतन्य महाप्रभु - चैतन्य महाप्रभु भक्तिकाल के प्रमुख सन्तों में से एक हैं। इन्होंने वैष्णवों के गौड़ीय सम्प्रदाय की आधार शिला रखी। इन्होंने भजन गायकी की एक नयी शैली को जन्म दिया तथा राजनीतिक अस्थिरता के दिनों में हिन्दू-मुस्लिम एकता की सद्भावना को बल दिया और जात-पाँत, ऊँच-नीच की भावना को दूर करने की शिक्षा दी। विलुप्त होते वृन्दावन को फिर से बसाया और अपने जीवन का अन्तिम भाग वहीं व्यतीत किया। चैतन्य को इनके अनुयायी कृष्ण का अवतार भी मानते रहे हैं। जब ये अपने पिता का श्राद्ध करने बिहार के गया नगर में गये, तब वहाँ इनकी मुलाक़ात ईश्वरपुरी नामक सन्त से हुई, उन्होंने चैतन्य महाप्रभु से 'कृष्ण-कृष्ण' रटने को कहा। तभी से इनका सारा जीवन बदल गया और ये हर समय भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन रहने लगे। भगवान श्रीकृष्ण के प्रति इनकी अनन्य निष्ठा व विश्वास के कारण इनके असंख्य अनुयायी हो गये। सर्वप्रथम नित्यानन्द प्रभु व अद्वैताचार्य महाराज इनके शिष्य बने। इन दोनों ने चैतन्य महाप्रभु के भक्ति आन्दोलन को तीव्र गति प्रदान की। कृष्ण भक्त चैतन्य महाप्रभु के जीवन-कथा को लेखिका ने बहुत ही से विस्तार लिखा है।
"प्रभाकिरण जैन -
30 अक्टूबर, 1963 को हरबर्टपुर, देहरादून (उत्तराखण्ड) में जन्म।
राजनीतिशास्त्र में एम.ए., डी.फिल.।
प्रकाशन: रंग-बिरंगे बैलून (शिशु गीत); वैशाली के महावीर (बाल काव्य) ; गीत खिलौने (बाल गीत); नागफनी सदाबहार है (कविता संग्रह); दस लक्षण (दस रस वर्षण); अनाथ किसान (कहानी); कथासरिता कथासागर, गोबर बनाम गोबर्धन, जमालो का छुरा (कहानी); चहक भी ज़रूरी महक भी जरूरी (डॉ. शेरजंग गर्ग के साथ), वैशालिक की छाया में (राजेश जैन के साथ सम्पादन)।
सम्मान/पुरस्कार: हिन्दी अकादमी, दिल्ली द्वारा बाल साहित्य सम्मान और बाल एवं किशोर साहित्य सम्मान।
आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर अनेक महत्त्वपूर्ण कार्यक्रमों की प्रस्तुति। टी.वी. द्वारा स्वरचित व्यंग्य विनोद के कार्यक्रम का धारावाहिक प्रसारण।
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