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Vani Prakashan
चन्द्रकान्ता
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9788188473922
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"आज हिन्दी के बहुत से उपन्यास हुए हैं, जिनमें कई तरह की बातें वो राजनीति भी लिखी गयी है, राजदरबार के तरीके वो सामान भी ज़ाहिर किये गये हैं, मगर राजदरबारों में ऐयार (चालाक ) भी नौकर हुआ करते थे जो कि हरफन-मौला, याने सूरत बदलना, बहुत-सी दवाओं का जानना, गाना-बजाना, दौड़ना, अस्त्र चलाना, जासूसों का काम देना, वगैरह बहुत-सी बातें जाना करते थे। जब राजाओं में लड़ाई होती थी तो ये लोग अपनी चालाकी से बिना खून गिराये वो पलटनों की जानें गँवाये लड़ाई खत्म करा देते थे। इन लोगों की बड़ी कदर की जाती थी। इन्हीं ऐयारी पेशे से आजकल बहुरूपिये दिखाई देते हैं। वे सब गुण तो इन लोगों में रहे नहीं, सिर्फ़ शक्ल बदलना रह गया, वह भी किसी काम का नहीं। इन ऐयारों का बयान हिन्दी किताबों में अभी तक मेरी नज़रों से नहीं गुजरा। अगर हिन्दी पढ़नेवाले इस मजे को देख लें तो कई बातों का फ़ायदा हो। सबसे ज़्यादे फ़ायदा तो यह है कि ऐसी किताबों को पढ़नेवाला जल्दी किसी के धोखे में न पड़ेगा। इन सब बातों का खयाल करके मैंने यह 'चन्द्रकान्ता' नामक उपन्यास लिखा। इस किताब में नौगढ़ वो विजयगढ़ दो पहाड़ी रजवाड़ों का हाल कहा गया है। उन दोनों रजवाड़ों में पहिले आपुस का खूब मेल रहना, फिर वज़ीर के लड़के की बदमाशी से बिगाड़ होना, नौगढ़ के कुमार बीरेन्द्रसिंह का विजयगढ़ की राजकुमारी चन्द्रकान्ता पर आशिक होकर तकलीफें उठाना; विजयगढ़ के दीवान के लड़के क्रूरसिंह का महाराज जयसिंह से बिगड़कर चुनार जाना और चन्द्रकान्ता की तारीफ़ करके वहाँ के राजा शिवदत्तसिंह को उभाड़ लाना वगैरह। इस बीच में ऐयारी भी अच्छी तरह से दिखलायी गयी है, और ये राज्य पहाड़ी होने से इसमें पहाड़ी नदियों, दरों, भयानक जंगलों और खूबसूरत वो दिलचस्प घाटियों का भी बयान अच्छी तरह से आया है।
मैंने आज तक कोई किताब नहीं लिखी है, यह पहिला श्रीगणेश है, इसलिए इसमें किसी तरह की गलती या भूल का हो जाना ताज्जुब नहीं जिसके लिए मैं आप लोगों से क्षमा माँगता हूँ, बल्कि बड़ी मेहरबानी होगी अगर आप लोग मेरी भूल को पत्र द्वारा मुझ पर ज़ाहिर करेंगे क्योंकि यह ग्रन्थ बहुत बड़ा है, आगे और छप रहा है, भूल मालूम हो जाने से दूसरी जिल्दों में उसको खयाल किया जायगा।
-देवकीनन्दन खत्री
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ISBN
9788188473922
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Vani Prakashan
Publication | Vani Prakashan |
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