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Vani Prakashan
छत के चाँद से होती मन की बात
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9789355181442
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"हम यही सुनते आये हैं कि कविता समाज का प्रतिबिम्ब होती है और उसी में उसकी सार्थकता है। किन्तु यह बात पूर्ण सत्य नहीं है। और इसकी गवाही देती हैं छत के चाँद से होती मन की बात नामक इस संकलन की कविताएँ। कवयित्री सुश्री जयन्ती सेन 'मीना' जी की ये कविताएँ बताती हैं कि कविता की सार्थकता समाज की तुलना में मन की आवाज़ सुनने में अधिक है। यदि कविता केवल समाजोन्मुख न होकर आत्मोन्मुख हो तो उसकी सार्थकता बढ़ जाने का सबूत हैं ये कविताएँ।
समाज के शोर और ऊहापोह में जो बातें दबी रह जाती हैं या अनसुनी रह जाती हैं वे कहीं पहुँचती नहीं हैं। एक तरह से वे आवाज़ें रास्ते में छूट गये टूटे पत्तों की तरह इधर-उधर भटकती रहती हैं और अन्त में विलुप्त हो जाती हैं। ऐसी छूटी आवाज़ें और वेदनाएँ मात्र अपने मन की नहीं बल्कि अनेक आकुल अन्तरों की ध्वनियाँ होती हैं जिनको सुनने में गहन आत्ममन्थन और आत्मअन्वेषण करना पड़ता है। इन कविताओं में वह आत्ममन्थन बहुत गहराई और सच्चाई से किया गया है । इस तरह दिलों की छूटी टूटी बात को दर्ज करते ही यहाँ कविता फिर से समाजोन्मुख हो जाती है क्योंकि वह एक से अनेक मन की बात हो जाती है । जयन्ती सेन ‘मीना’ जी ने अपने परिपक्व अनुभव और दार्शनिक चेतना से निज अन्तर्मन की अकुलाहट में अपने समय की बारीक से बारीक झंकृति को साकार किया है। वे केवल जीवितों की दुनिया से बाहर निकलकर वस्तुओं के भीतर भी करुणा का संचार करते हुए लिख पाती हैं :
क्या तुमने कभी किसी मोमबत्ती को
जलते हुए बहुत ध्यान से देखा है ?
धूनी सिर पर रमाये हुए
मसान की ख़ामोशी मन में बसाये हुए
धीमे-धीमे पल-पल उसे सुलगते हुए देखा है?
यह मोमबत्ती की
(मोमबत्ती)
मूक वेदना है या एक एकान्त जोगी की अन्तर्वाणी या कवयित्री जयन्ती सेन 'मीना' जी के मन की बात? ऐसी मार्मिक अभिव्यक्ति ही इन कविताओं की उपलब्धि है जिसे पढ़कर और गहराई से अनुभव किया जा सकता है।
- बोधिसत्व, मुम्बई
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ISBN
9789355181442
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Vani Prakashan
Publication | Vani Prakashan |
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