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Vani Prakashan

छुआछूत

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9788181438652
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"अक्करमाशी' के दिल को दहला देने वाले आत्मकथात्मक अनुभव की अभिव्यक्ति के खतरे उठाने के बाद डॉ. शरणकुमार लिंबाले के विद्रोही रचनाकार ने दलित चेतना के विस्फोटक अनुभवों को डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर की वैचरिक बुनियाद के आधार पर कहानियों के माध्यम से जो अभिव्यक्ति दी उसका नाम है छुआछूत; अवमानना, अन्याय, अत्याचार और शोषण के जिन अमानुष अनुभवों से रचनाकार गुजरा उन्हें और उनके समय की समकालीनता को उसने एक खास क्रांतिकारी नज़रिये से रचा और सामाजिक यथार्थ की ओर देखने के लिए पाठक को विवश किया। ये कहानियाँ दलित क्रांति की चिंगारियाँ हैं और इनकी मूल भाषा की आग और धार को अनुवाद में भरसक बरकरार रखने की कामयाब कोशिश ज्येष्ठ अनुवादक निशिकांत ठकार ने दी है। - चंदकांत पाटील "
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9788181438652
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Vani Prakashan
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शरणकुमार लिंबाले (Sharankumar Limbale)

शरणकुमार लिंबाले

जन्म : 1 जून, 1956; महाराष्ट्र के सोलापुर ज़िले के हन्नूर गाँव में।

शिक्षा : शिवाजी विश्वविद्यालय, कोल्हापुर से मराठी भाषा में एम.ए.। इसके बाद यहीं से ‘मराठी दलित साहित्य और अमेरिकन ब्लैक साहित्य : एक तुलनात्मक अध्ययन’ विषय पर पीएच.डी.।

यशवंतराव चव्हाण महाराष्ट्र ओपन यूनिवर्सिटी (नासिक) में प्रोफ़ेसर एवं निदेशक-पद से सेवानिवृत्त।

प्रमुख कृतियाँ : मराठी भाषा में दर्जनों पुस्तकें प्रकाशित। हिन्दी में ‘अक्करमाशी’ (आत्मकथा); ‘नरवानर’, ‘हिन्‍दू’, ‘बहुजन’, ‘सनातन’ (उपन्‍यास); ‘देवता आदमी’, ‘छुआछूत’, ‘दलित ब्राह्मण’ (कहानी-संग्रह); ‘दलित साहित्य का सौन्दर्यशास्त्र’ (आलोचना) आदि प्रकाशित एवं चर्चित‍।

सम्‍मान : ‘सरस्वती सम्मान’ सहित कई सम्‍मानों से सम्‍मानित।

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