यह तेंडुलकर द्वारा रचित ‘चौपट राजा तथा अन्य बाल नाटक’ बच्चों के लिए लिखा नाटक है। इसकी शैली अति मनोरंजक तथा भाषा अति सरल है। इसमें चिड़िया का बंगला, चौपट राजा, ताशे वाला तीन कहानियाँ संकलित हैं। नाटक लिखते समय लेखक ने बाल मनोविज्ञान का विशेष ध्यान रखा है। भाषा बाल दर्शकों को गुदगुदाने में पूर्ण सफल है साथ ही बच्चों को शिक्षा देने का भी प्रयास किया गया है। ‘चिड़िया का बंगला’ के माध्यम से बच्चों को यही बताने का प्रयास किया गया है कि मानव को अपने समाज के अनुसार ही व्यवहार करना चाहिए, जो अपनी जड़ों से छूट जाता है उसका अस्तित्व ख़तरे में आ जाता है। ‘चौपट राजा’ में यथा राजा तथा प्रजा का अति सरस, सहज भाषा में वर्णन है। व्यंग्यात्मक रूप में लिखा यह नाटक अपनी शैली, भाषा के सहारे अपने उद्देश्य में पूर्ण सफल है। ‘ताशेवाला’ के माध्यम से गाँव के लड़कों की काम के प्रति चाह दिखाने का प्रयास है। गाँव का एक धनिक अपनी बेटी की शादी में गाँव के ताशेवाले की उपेक्षा कर शहर का बैंड बुलाने की कोशिश करता है लेकिन एक ताशेवाला सियार की नकली आवाज़ निकालकर, भूतों का भय दिखाकर शहरी बैंड को भगा देता है। तीनों नाटक अति मनोरंजक हैं।
मराठी के आधुनिक नाटककारों में शीर्षस्थ विजय तेन्दुलकर अखिल भारतीय स्तर पर प्रतिष्ठित एक महत्त्वपूर्ण नाटककार थे। 50 से अधिक नाटकों के रचयिता तेन्दुलकर ने अपने कथ्य और शिल्प की नवीनता से निर्देशकों और दर्शकों, दोनों को बराबर आकर्षित किया। पूरे देश में उनके नाटकों के अनुवाद एवं मंचन हो चुके हैं। हिन्दी में उनके 30 से अधिक नाटक खेले जा चुके हैं।
‘खामोश! अदालत जारी है’, ‘घासीराम कोतवाल’, ‘सखाराम बाइंडर’, ‘जाति ही पूछो साधु की’ और ‘गिद्ध’ आदि बहुचर्चित-बहुमंचित नाटकों के अलावा उनकी प्रमुख नाट्य-रचनाएँ हैं : ‘अंजी’, ‘अमीर’, ‘कन्यादान’, ‘कमला’, ‘चार दिन’, ‘नया आदमी’, ‘बेबी’, ‘मीता की कहानी’, ‘राजा माँगे पसीना’, ‘सफ़र’, ‘नया आदमी’, ‘हत्तेरी क़िस्मत’, ‘आह’, ‘दंभद्वीप’, ‘पंछी ऐसे आते हैं’, ‘काग विद्यालय’, ‘काग़ज़ी कारतूस’, ‘नोटिस’, ‘पटेल की बेटी का ब्याह’, ‘पसीना-पसीना’, ‘महंगासुर का वध’, ‘मैं जीता मैं हारा’, ‘कुत्ते’, ‘श्रीमंत’, ‘विट्ठला' आदि।
विजय तेन्दुलकर के नाटकों में मानव जीवन की विषमताओं, स्वाभाविक व अस्वाभाविक यौन सम्बन्धों, जातिगत भेदभाव और हिंसा का यथार्थ चित्रण मिलता है। उनके अधिकांश पात्र मध्यम एवं निम्न मध्यवर्ग के होते हैं और उनके विभिन्न रंग इन नाटकों में आते हैं।