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दलित चेतना की कहानियाँ : बदलती परिभाषाएँ

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कहानी, आज साहित्य की अन्य विधाओं को अपदस्थ करती और नव्यतम विधाओं में घुसपैठ करती नज़र आती है। वैसे तो आज चर्चा के केन्द्र में है-स्त्री और दलित साहित्य। हिन्दी दलित साहित्य में मराठी जैसी दलित संवेदना और सौन्दर्य-बोध का विकास नहीं हो पाया। इनकी कहानियाँ और आत्मकथ्य भी राजनीतिक छल-छद्म मात्र हैं। सच तो यह है कि इनसे श्रेष्ठ दलित रचनाएँ दलितेतर रचनाकारों ने लिखीं। पर अधिकांश तथाकथित दलित कर्णधार इन्हें दलित साहित्य मानने के लिए तैयार नहीं। ठीक यही स्थिति महिला रचनाकारों की है। वस्तुतः उनके अनुभव उनके अपने ही हो सकते हैं, इसमें कोई दो राय नहीं, किन्तु अभिव्यक्ति की दिशा दशा 'साहित्य' का अभिप्रेत नहीं ।

संवेदना, गहन संवेदना की अनुभूति तथा उसकी अभिव्यक्ति का प्रयास इस काल की कहानी को जन-सामान्य से सचमुच जोड़ता है और रचनाकार की संवेदना पाठकीय संवेदना, जन-सामान्य की संवेदना, लोक-जीवन की संवेदना बनकर वर्षों बाद उभरती है। इनमें विचार भी है, पर बोझिलता नहीं। पठनीयता भी है और है चरित्र, जो इतिहास का अंग है। वैयक्तिकता, अकेलापन, कुण्ठा, सन्त्रास, सेक्स, व्यर्थता-बोध, शोषण, बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार, व्यवस्था का कुचक्र आदि चालू फार्मूलों से अलग जीवन को नये सिरे से व्याख्यायित करती जीवन्त, लोकजीवन के व्यापक सार्थक सरोकार से समृद्ध हैं ये कहानियाँ। इनमें नैतिकता और मानवीय मूल्यों की पुनस्थार्पना का प्रयास है। जीवन-मूल्य की नयी स्थापना, करुणा-सम्पृक्त स्थापना है।

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9788181438140
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प्रो. राजमणि शर्मा (Prof. Rajmani Sharma)

"प्रो. राजमणि शर्मा - 2 नवम्बर, 1940 को लम्भुआ, सुल्तानपुर (उ.प्र.) गाँव की माटी में जन्म । प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा के पश्चात् काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से एम.ए. (हिन्दी), भाषा विज्ञान में द्विवर्षीय स्नातकोत्तर डिप्लोमा एवं पीएच.डी. (हिन्दी) । कृतकार्य आचार्य, हिन्दी विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय । सम्प्रतिः स्वतन्त्र लेखन, व्याख्यान । आदिकालीन, आधुनिक तथा समकालीन हिन्दी साहित्य, भाषा-बोली-अध्ययन, अनुवाद विज्ञान, कोश, विज्ञान, जनसंचार माध्यम, कम्प्यूटर और अनुप्रयुक्त हिन्दी में विशेषज्ञता । 'प्रसाद का गद्य-साहित्य', 'आधुनिक भाषा विज्ञान', 'हिन्दी भाषा : इतिहास और स्वरूप', 'भारतीय प्राणधारा का स्वाभाविक विकास : हिन्दी कविता', 'मेरो मन अनत कहाँ सुख पायो', 'दलित चेतना की कहानियाँ : बदलती परिभाषाएँ' (वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली), 'काव्य भाषा : रचनात्मक सरोकार', 'बलिया का विरवा : काशी की माटी', 'अनुवाद विज्ञान : प्रायोगिक सन्दर्भ', 'अनुवाद विज्ञान' । काव्यभाषा : रचनात्मक सरोकार उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा आचार्य रामचन्द्र शुक्ल नामित समीक्षा पुरस्कार से पुरस्कृत । विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा समस्त भारत के स्नातक एवं स्नातकोत्तर कक्षाओं के लिए हिन्दी पाठ्यक्रम निर्मिति हेतु गठित पाठ्यक्रम विकास केन्द्र का संयोजक एवं संयुक्त समन्वयक । पाठ्यक्रम स्वीकृत/प्रचारित । हिन्दी साहित्य की विभिन्न विधाओं, भाषा विज्ञान, अनुवाद विज्ञान और हिन्दी की स्थिति-परिस्थिति एवं भविष्य, हिन्दी अनुप्रयोग पर विभिन्न विश्वविद्यालयों में व्याख्यान आलेख । सम्पर्क : चाणक्यपुरी, सुसुवाही, वाराणसी-221005"

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