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Vani Prakashan

दस्तख़त और अन्य कहानियाँ

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"स्त्री-जीवन की निजता से जुड़ी कहानियों में सामान्यीकरण की जगह विशेषीकरण आ जाता है लेकिन ज्योति की कहानियाँ इस विशेषीकरण में भी पारिवारिक-सामाजिक यथार्थ की विविधता से साक्षात्कार कराती हैं।"
-खगेन्द्र ठाकुर, वरिष्ठ आलोचक

सेक्स प्रधान एजेंडा लेखन के तहत स्त्री-विमर्श के दीप को जलाये रखने की जिद के मध्य युवा लेखिकाओं की कतार में ज्योति के सृजन का फलक कहीं अधिक अलग, विस्तृत व विविध है।
- राजेन्द्र राजन, सम्पादक, प्रगतिशील इरावती

फिर तुमने बड़े प्यार से मुझे समझाया था-जान, बातों की भी अपनी शक्ल होती है, अपनी गन्ध होती हैं, और बचपन से जो बातें मन में बैठ जाती हैं, वे अवचेतन में अपना एक खास आकार-प्रकार, रंग-रूप, गन्ध अख्तियार कर ही लेती हैं...

 

कोटरों में धँसी आँखें... इतनी गहरी और स्याह... कि सूरज की रोशनी भी पूरी तरह आँखों तक नहीं पहुँचती। मगर हमेशा खुली रहती हैं ये आँखें। कभी पलकें नहीं झपकतीं। कम से कम मैंने तो नहीं देखा इन्हें झपकते हुए। शायद जम गयी हैं। दहशत से ...? लेकिन नहीं... ऐसा होता तो कभी किसी ने चीख तो सुनी होती! क्या वह भी घुट गयी है... ? तो आँखों के इन कोरों से कभी तो कोई नदी की धारा ही निकली होती । शिवजी की जटा से निकली गंगा की कम से कम एक बूँद तो यहाँ तक पहुँचती ।

(पुस्तक अंश)

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9789350724675
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ज्योति कुमारी (Jyoti Kumari)

"ज्योति कुमारी जन्म : 9 मार्च 1984 शिक्षा : स्नातकोत्तर (राजनीति विज्ञान), पी. जी. डिप्लोमा (जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन), एल.एल.बी. । हंस, नया ज्ञानोदय, परिकथा, पाखी, जनसत्ता, हिन्दुस्तान व प्रभात खबर आदि पत्र-पत्रिकाओं में कहानियाँ व आलेख प्रकाशित। 'हंस' के सम्पादक राजेन्द्र यादव के साथ 'स्वस्थ व्यक्ति के बीमार विचार' पुस्तक का सह-लेखन । उर्दू, उड़िया, मराठी भाषाओं में कहानी व पुस्तक अनूदित । "" भुवनेश्वर कथा सम्मान 2013' से पुरस्कृत।"

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