Publisher:
Vani Prakashan

दयाशंकर की डायरी

In stock
Only %1 left
SKU
9788181438270
Rating:
0%
As low as ₹100.00 Regular Price ₹125.00
Save 20%
"निर्देशकीय - दयाशंकर मेरे लिए कोई काल्पनिक पात्र नहीं है । दयाशंकर जीवित है और सत्य है। मुंबई में इन 26 वर्षों में मैंने न जाने कितने दयाशंकर देखे । बम्बई ही क्यों हर महानगर में हमें दयाशंकर मिल जाएँगे। दयाशंकर की कहानी सुनाने का निर्णय मैंने क्यों लिया? इसका कारण ये है कि कहीं न कहीं हम सब दयाशंकर के लिए उत्तरदायी हैं । मैं, आप, हमारा पूरा समाज । दयाशंकर एक अकेला आदमी है। उसकी दुनिया की भ्रान्तियाँ और वास्तविकताएँ इस हद तक बढ़ जाती हैं कि वो एक हो जाती हैं। जैसा कि Freuid ने कहा है कि ""इंसान अपनी अंदरूनी दुनिया में उतना ही जीता है जितना कि बाहरी दुनिया में लेकिन उस आदमी का क्या होता है जो इन दोनों में अन्तर नहीं कर पाता ? 'दयाशंकर की डायरी' एक ऐसे ही असफल आदमी के जीवन की प्रस्तुति है । एक बहुत छोटे से कस्बे का आदमी जो अपनी आँखों में फिल्म स्टार बनने के सपने सजाए मुंबई शहर में आता है। लेकिन उसे काम मिलता है सिर्फ एक मामूली क्लर्क का । वो अपनी ज़िन्दगी की इस कटु सच्चाई के साथ समझौता नहीं कर पाता और अपने जीवन की आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियों में जकड़ जाता है। Bertolt Brecht ने कहा है “एक आदमी को कम तनख़्वाह पर नौकरी देना उसे आजीवन कारावास की सज़ा देना है।"" दयाशंकर अपने को बहुत ही अपमानित और बहिष्कृत महसूस करता है । दयाशंकर छोटे से कमरे से अपने रूममेट के साथ रहता है। वो अपने जीने के लिए एक बहुत सुन्दर दुनिया का ताना-बाना बुनने लगता है । ऐसा ताना-बाना जिसमें अन्त में खुद ही फँस जाता है कि अपने आप को खो बैठता है । क्या दयाशंकर सचमुच पागल है... ? क्यों हम सब इस पात्र से एक रिश्ता - सा महसूस करते हैं? क्या हम सब भी अपनी असफलताओं से भागकर अपनी काल्पनिक दुनिया में शरण नहीं लेते? जो आदमी अपनी असफलताओं के साथ समझौता नहीं कर पाता क्या होता है उसका ? ये नाटक इसी तरह के कुछ जिज्ञासा, कौतूहल भरे प्रश्नों को उठता है । विशेष बात ये है कि ये नाटक इंसानी दिमाग़ की अजीबो-गरीब कार्य क्रियाओं पर बड़ी सरलता से प्रकाश डालता है । मेरा ये पहला नाटक है। इससे पूर्व मैंने बहुत से अनुवाद, अनेक गीत और संवाद इत्यादि लिखे हैं । आशीष विद्यार्थी जैसे अभिनेता के होने से नाटक की संवेदनशीलता उभर के आ सकी 'एकजुट' संस्था आशीष विद्यार्थी की आभारी हैं। अब ये पुस्तक आपके हाथ में है नाटक जैसा भी लगे इसकी प्रतिक्रिया मुझ तक ज़रूर पहुँचाएँ । -नादिरा ज़हीर बब्बर "
ISBN
9788181438270
Publisher:
Vani Prakashan
More Information
Publication Vani Prakashan
Write Your Own Review
You're reviewing:दयाशंकर की डायरी
Your Rating
कॉपीराइट © 2025 वाणी प्रकाशन पुस्तकें। सर्वाधिकार सुरक्षित।

डिज़ाइन और विकास: Octagon Technologies LLP