एक बुरी औरत की आत्मकथा से हिन्दी जगत में अपनी विशेष पहचान बनाये वाली पाकिस्तानी लेखिका किश्वर नाहिद का सम्बन्ध दरअसल उर्दू शायरी से रहा है। जीवन में संघर्ष और नैतिक दृष्टिकोण की वकालत करने वाली किश्वर ने जब अपने अहसास शायरी में बयाँ किये तो उर्दू शायरी में जैसे ज़लज़ला आ गया। ये वही समय था जब पाकिस्तान में जनरल ज़िया-उल-हक़ के फ़ौजी शासन का डंडा आम जनता के जीवन को त्रस्त कर रहा था। इसी समय में जब फ़हमीदा रियाज़, परवीन शाकिर, समीना राजा, शारा शगुफ़्ता और किश्वर नाहिद जैसी बेवाक महिला साहित्यकारों ने पाकिस्तानी शायरी के फलक पर दस्तक दी। इनके सबके अलग-अलग तेवर थे लेकिन एक बात सबमें समान थी कि सभी को अपने विषय की बोल्डनेस के साथ लगातार पाकिस्तान के संकुचित पुरुष सत्तात्मक साम्राज्य को चुनौती दे रही थी। किश्वर उर्दू शायरी में अपने समस्त बाग़ीना तेवर के सामने आयीं और देखते ही देखते ये बाग़ी तेवर उन लोगों के लिए राहत और सुकून का पैग़ाम लेकर आये जो एक घुटन भरी ज़िन्दगी से बाहर निकलने को बेताब थे। किश्वर प्रतीकों में नहीं जीतीं बल्कि ये बाग़ियाना बुरी औरत उनकी शायरी में आसानी से देखी जा सकती है जो धर्म, समाज, सत्ता, राजनीति से बेखौफ़ होकर युद्ध लड़ रही है और उसे किसी भी अच्छे-बुरे परिणाम की प्रतीक्षा नहीं है।
किश्वर नाहीद का जन्म सन् 1940 में एक पारम्परिक मध्यवर्गीय घराने में हुआ था। सन् 1949 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बुलन्दशहर से वह अपने परिवार के साथ लाहौर चली गयीं। उनके पहले कविता संग्रह, लब-ए गोया (1968), ने उन्हें एक नयी बुलन्द आवाज़ के रूप में पहचान दी और पाकिस्तान के नारीवादी आन्दोलन में विशेष भूमिका के साथ स्थापित किया। जनरल ज़िया-उल-हक़ की ज्यादतियों के बीच उनकी कविता हम गुनहगार औरतें फासीवादी सियासत के विरोध का समूहगान बन गयी और तब से अब तक प्रतिरोध का एक स्थायी प्रतीक बनी हुई है। उनके प्रत्येक कविता संग्रह ने मानवाधिकारों और प्रगतिशील सोच वाली बुलन्द आवाज़ के रूप में उनकी प्रतिष्ठा को बढ़ाया है। उनकी कृतियों में वर्क वर्क आईना, गलियन धूप दरवाज़े, औरत-मर्द का रिश्ता, रात के मुसाफिर, शेर और बकरी, जादू की हँडिया, चाँद की बेटी, आबाद ख़राबा और उनकी आत्मकथा बुरी औरत की ख़ता शामिल हैं। उनकी संगृहीत कृतियाँ कुल्लियात दश्त-ए-कैस में लैला में पायी जा सकती हैं।