दीवार के पीछे - इस पाखण्डी समय के सामने संवेदना निरन्तर बेचैन रहने को अभिशप्त है, अतः कथाकार की रचनाकुलता जीवन को वैचारिक सहजता व कृतित्व की आत्मीयता में समझने का प्रयास करती है। उर्मिला शिरीष प्रयोग और कलात्मकता के नाम पर 'कंटेट' की बलि नहीं देतीं, न अपने ग़लत के समर्थन में तर्कों के आयुध तानती हैं, वह अमूर्तन अस्पष्टता व वैयक्तिकता की परिधि के आगे जीवन को युगीन सन्दर्भों के साथ ठोस धरातल पर परखने का जो उद्यम करती हैं, उनका वही बोध उन्हें समकालीनों से अलग महत्त्व देता है... उनकी रचना सन्तुलित आधुनिकता का प्रारूप बनाती है... विश्वास जगाती है। जैसे 'दीवार के पीछे' कहानी दैन्य, पराजय या पलायन से ग्रस्त, निराशा से अभिक्रान्त कहानी नहीं है। वह एक व्यापक संसार की ओर आत्म का विस्तार करती है। पूँजीवाद ने चिकनी सड़कों, बंगलों और कॉलोनियों में दमक व दिखावे की ललक पैदा करते हुए एक ख़ास क़िस्म के 'प्यूरिटन' समाज की रचना की है जहाँ जाति और पन्थ को वर्गीय सदाशयता की ओट देकर थोड़ा-सा पीछे कर दिया जाता है। उर्मिला शिरीष अपनी कहानियों में बहुत आहिस्ता से इस ओर इंगित करती हैं तथा यह छिपाती नहीं कि वह भी इस वर्ग का एक हिस्सा हैं। इसीलिए इस भद्रलोक द्वारा 'सुख' में लात मारने का छद्म नहीं रचतीं। यही वह ईमानदारी और रचनात्मक कौशल है, जो लेखक को आसपास की दुनिया को अन्तरंगता व पूरी परिपार्शिवकता में देखने और ज़ाहिर करने का साहस देता है।—महेश कटारे
"डॉ. उर्मिला शिरीष -
जन्म: 19 अप्रैल, 1959।
शिक्षा: एम.ए., पीएच.डी., डी.लिट्. (आद्योपान्त प्रथम श्रेणी)।
प्रकाशित कृतियाँ: ‘मेरी प्रिय कथाएँ', 'ग्यारह लम्बी कहानियाँ', 'प्रेम सम्बन्धों की कहानियाँ', 'कुर्की और अन्य कहानियाँ', 'मुआवज़ा', 'लकीर तथा अन्य कहानियाँ', 'पुनरागमन', 'निर्वासन', 'रंगमंच', 'शहर में अकेली लड़की', 'सहमा हुआ कल', 'केंचुली', 'वे कौन थे' (कहानी-संग्रह)। सम्पादित कृतियाँ : 'ख़ुशबू', 'धूप की स्याही', 'प्रभाकर श्रोत्रिय : आलोचना की तीसरी परम्परा', 'हिन्दी भाषा एवं समसामयिकी', 'सृजनयात्रा, गोविन्द मिश्र पर केन्द्रित राष्ट्रभाषा प्रचार समिति'।
सम्मान/पुरस्कार: 'शैलेश मटियानी कथा सम्मान' (2013), 'ओजस्विनी सम्मान' (2013), 'कृष्ण प्रताप कथा सम्मान' (2013), 'विजय वर्मा कथा पुरस्कार' (2006), 'निर्मल पुरस्कार' (2005), 'भगवत प्रसाद साहित्य सम्मान' (2005), 'डॉ. बलदेव मिश्र पुरस्कार' (2004), 'समर साहित्य पुरस्कार' (1999)।
टेलीसीरियल: दूरदर्शन द्वारा कहानी 'पत्थर की लकीर' पर टेलीफ़िल्म। उर्दू, अंग्रेज़ी, पंजाबी, सिन्धी तथा ओड़िया में कुछ कहानियों का अनुवाद।
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