Publisher:
Vani Prakashan

धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे

In stock
Only %1 left
SKU
9788170558224
Rating:
0%
As low as ₹160.00 Regular Price ₹200.00
Save 20%

धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे - 
दूधनाथ सिंह का यह पाँचवाँ कहानी-संग्रह है। इस संग्रह की सारी कहानियाँ पिछली शताब्दी के अन्तिम दशक में लिखी गयीं, सिवा एक कहानी 'दुर्गन्ध' को छोड़कर, जो श्री भैरव प्रसाद गुप्त द्वारा सम्पादित 'समारंभ' के प्रवेशांक में सन् १९७२ में छपी थी।
कहते हैं कि एक बड़ा कवि एक ही कविता बार-बार जीवन-भर लिखता है लेकिन एक बड़ा कथाकार हर बार एक अनहोनी और अलग कहानी लिखता है। दूधनाथ सिंह ने कभी अपने को दुहराया नहीं। इसीलिए उनका संवेदनात्मक अन्वेषण और नवोन्मेष हर बार पाठकों को हैरत में डालता है और अक्सर उन्हें अस्त व्यस्त कर देता है। लेकिन अपनी हैरानी और अस्त व्यस्तता के बावजूद पाठक को हर बार एक ही अनुभूति होती है—
देखना तकरीर की लज्ज़त कि जो उसने कहा
मैंने ये जाना कि गोया यह भी मेरे दिल में है।
प्रस्तुत संग्रह की कहानियों में लोक-रंग का एक अद्भुत प्रवेश हुआ है। कहानी की अन्तर्वस्तु, स्थितियों और प्रभावों को एक वृहत्तर पाठक-वर्ग तक ले जाने की क्षमता से युक्त भाषा अपनी विविध-वर्णी संरचना, सहजता, अनायासता और निपट सरलता को यहाँ उपलब्ध करती है। बात को बखानने का एक नया ढंग, जो कहानीकार और पाठक को एकमेक करता है– इसी रूप में यह कथाकार कहानी की दुनिया में व्याप्त फ़न और फ़ैशन से अलग, कहानी को किसी भी संक्रामक 'रीति', 'नीति' से मुक्त करता हुआ भारतीय जनता के यथार्थ को उद्घाटित करने का एक दुस्साहसिक प्रयत्न करता है। 'धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे' इसी जनोन्मुख यथार्थ का एक दस्तावेज़ है।

ISBN
9788170558224
Publisher:
Vani Prakashan
More Information
Publication Vani Prakashan
दूधनाथ सिंह (Dhoodhnath Singh)

"दूधनाथ सिंह - जन्म : १७ अक्टूबर, सन् १९३६ ई.। उत्तर प्रदेश के बलिया ज़िले के एक छोटे-से गाँव सोबन्था में। शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी साहित्य) इलाहाबाद विश्वविद्यालय। जीविका :कुछ दिनों ( १९६०-६२ तक) कलकत्ता में अध्यापन। फिर इलाहाबाद विश्वविद्यालय, हिन्दी-विभाग में। अब सेवानिवृत्त। लेखन : सन् १९६० के आस पास से। किताबें : १. सपाट चेहरे वाला आदमी, २. सुखान्त, ३.प्रेमकथा का अन्त न कोई, ४. माई का शोकगीत, ५. धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे (कहानीसंग्रह), ६. नमो अंधकारम् (लम्बी कहानी (आख्यान)), ७. यमगाथा (नाटक), ८. अपनी शताब्दी के नाम, ९. एक और भी आदमी है (कविता-संग्रह), १०. सुरंग से लौटते हुए (लम्बी कविता), ११. निराला : आत्महन्ता आस्था (निराला की कविताओं पर एक सम्पूर्ण किताब), १२. लौट आ, ओ धार! (संस्मरण), १३. पक्षधर (एक पत्रिका का एक ही अंक। (आपात्काल में ज़प्त)। इसके अलावा बहुत-कुछ आलस्य अस्वास्थ्य और पुनर्विचार के कारण स्थगित, अतः अप्रकाशित। आलोचनात्मक लेख, साक्षात्कार, कविताएँ, कहानियाँ, गप्प, संस्मरण, और डायरियाँ। मुक्तिबोध, ग़ालिब और कबीर पर कच्ची की हुई पुस्तकें। एक नाटक तथा दो उपन्यास। "

Write Your Own Review
You're reviewing:धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे
Your Rating
कॉपीराइट © 2025 वाणी प्रकाशन पुस्तकें। सर्वाधिकार सुरक्षित।

डिज़ाइन और विकास: Octagon Technologies LLP