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Bharatiya Jnanpith

Dhyanstava

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ध्यानस्तवः
'ध्यानस्तव' भास्करनन्दि का एक सौ पदों का काव्य है, जिसे उन्होंने अपने चित्त की एकाग्रता के लिए ही रचा है। अपनी विधा में यह जिनदेव के प्रति की गयी प्रार्थना है। इस ग्रन्थ में कुछ महत्त्वपूर्ण विषयों पर विचार हुआ है-
पिंडस्थ की संकल्पना परिवर्तित हो गयी है और चार स्थों के क्रम का पुनर्विन्यास किया गया है, जिस परवर्ती ग्रन्थकारों ने स्वीकार किया है। वे अनुष्ठान के एक के बाद एक चरण के रूप में, जो उच्चतर धरातल की ओर ले जाता है, व्यवस्थित किये गये हैं।
अरूपस्थ को रूपातीत अथवा रूपवर्जित के नाम भी दिये गये हैं, जिन्हें परवर्तियों भी स्वीकार किया है।
पिंडस्थ का परवर्ती ग्रन्थों में सविस्तार वर्णित पाँच उपविभागों के साथ संगठित रूप में किंचित् भी वर्णन नहीं किया गया है। तथापि उनकी प्राथमिक संकल्पना इसमें पहचानी जा सकती है। दूसरे स्थों की यहाँ पर अपरिष्कृत रूप में इतने सादे और अकृत्रिम ढंग से व्याख्या हुई है।

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