Publisher:
Bharatiya Jnanpith

Digambaratva Aur Digambar Muni

In stock
Only %1 left
SKU
9788126351225
Rating:
0%
As low as ₹237.50 Regular Price ₹250.00
Save 5%

दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुनि

प्रस्तुत पुस्तक में दिगम्बरत्व के समर्थन में प्राचीन शास्त्रों के उल्लेखों और शिलालेखों तथा विदेशी यात्रियों के यात्रा विवरणों में से साक्ष्यों का संग्रह कर बड़ी गम्भीर खोज के साथ बाबू कामता प्रसाद जैन द्वारा लिखित यह पुस्तक पहली बार सन् 1932 में प्रकाशित हुई थी।

इसमें दिगम्बरत्व के सैद्धान्तिक और व्यावहारिक सत्य 'का प्रामाणिक विवेचन है। साथ ही, हरेक धर्म के मान्य ग्रन्थों से, चाहे वह वैदिक धर्म हो, ईसाई अथवा इस्लाम धर्म हो - इस विषय को पुष्ट किया गया है। क़ानून की दृष्टि से भी दिगम्बरत्व अव्यवहार्य नहीं है। इस बात के समर्थन में सुयोग्य लेखक ने किसी बात की कमी नहीं रखी।

दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुनि विषयक विवेचना में यह कृति हर दृष्टि से आज भी उतनी ही प्रामाणिक और उपयोगी है।

भारतीय ज्ञानपीठ को इस दुर्लभ कृति के प्रकाशन पर प्रसन्नता है।

ISBN
9788126351225
Publisher:
Bharatiya Jnanpith
More Information
Publication Bharatiya Jnanpith
बाबू कामताप्रसाद जैन (Babu Kamtaprasad Jain)

"बाबू कामताप्रसाद जैन बाबू कामताप्रसाद जैन का जन्म 3 मई 1901 को कैपबेलपुर (आजकल पाकिस्तान) में हुआ था, जहाँ दूर-दूर तक जैन धर्मानुरूप वातावरण नहीं था, फिर भी उनकी माता श्री ने जैनधर्म की विचारधारा, सिद्धान्त और संस्कारों की उन पर अमिट छाप छोड़ी। कामताप्रसाद जी की बचपन की शिक्षा हैदराबाद (सिन्ध) में नवलराम हीराचन्द एकेडमी में हुई। उनकी यह पारम्परिक शिक्षा आरम्भिक ही रही, फिर भी उन्होंने अपने स्वाध्याय से धीरे-धीरे हिन्दी, संस्कृत, प्राकृत, अँग्रेजी तथा उर्दू भाषाओं पर असाधारण अधिकार प्राप्त कर लिया था। यही कारण है कि आगे चलकर अनेक विश्वविद्यालयों ने उनकी प्रतिभा का मूल्यांकन कर उन्हें पी-एच.डी. की मानद उपाधि से सम्मानित किया। बाबू कामताप्रसाद ने अपने जीवन में जैनधर्म से सम्बन्धित अनेक ग्रन्थों की रचना की। प्रमुख हैं- जैनधर्म का संक्षिप्त इतिहास, भगवान महावीर और बुद्ध, आदितीर्थंकर भगवान ऋषभदेव, गिरनार गौरव, अहिंसा और उसका विश्वव्यापी प्रभाव, Religion of Tirthankaras, Some Historical Jain Kings and Heroes, Mahavira and Buddha | वे जैनमित्र, जैनसिद्धान्तभास्कर, दैनिक सुदर्शन, वीर, अहिंसा वाणी और The Voice of Ahimsa के सम्पादक भी रहे। जैनधर्म-दर्शन और साहित्य पर उनके निर्भीक एवं सप्रमाण ज्ञानवर्द्धक सम्पादकीय उल्लेखनीय हैं। सन् 1964 में उनका देहावसान हुआ।"

Write Your Own Review
You're reviewing:Digambaratva Aur Digambar Muni
Your Rating
कॉपीराइट © 2025 वाणी प्रकाशन पुस्तकें। सर्वाधिकार सुरक्षित।

Design & Developed by: https://octagontechs.com/