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Vani Prakashan

दो अण्डे

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जेलर साहब की दिनचर्या अब इन दो अण्डों के इर्द-गिर्द ही सीमित रहने लगी। किस प्रकार से किसी के जाने बग़ैर उबले अण्डे हासिल किये जायें और कितनी जल्दी उनको निगलकर छिलके आदि सबूत रफा-दफा कर दिये जायें। एक-दो बार तो उन्होंने सोचा कि इसी प्रकार क्यों न कबाब का भी इन्तज़ाम किया जाये, परन्तु कबाब की महक शायद जेलरनी ताड़ जायें इसलिए यह ख़तरनाक साबित हो सकता था, और वैसे भी ठण्डा कबाब किस काम का। अपनी हवस में वे कभी-कभी दो अण्डे शाम के टहलने के समय भी ले आते थे। जब बार-बार उनका पेट चलना शुरू हुआ तो जेलरनी ने सवालों की झड़ी लगा दी। तहक़ीक़ात में वे किसी मुकाम पर तो नहीं पहुँच पायीं परन्तु जेलर साहब एकदम सतर्क हो गये।

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9789389915327
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