दो हज़ार वर्ष पुरानी कहानियाँ - प्राचीन भारतीय साहित्य लोक-कथाओं का एक अक्षय भण्डार है। कथा के माध्यम से जीवन और जगत् की सम्पूर्ण जानकारी तथा मानव जीवन को उन्नत बनाने की शिक्षा प्राचीन साहित्य की विशेषता रही है। ये इतनी समर्थ, ऐसी मर्म-छूती, सहज और स्वाभाविक कथा-कहानियाँ हैं कि युगों तक मानव को इनसे प्रेरणा मिलती रही है और आज भी वे अपने सामाजिक सन्दर्भों में उतनी ही सक्षम हैं। प्रस्तुत संग्रह में डॉ. जगदीशचन्द्र जैन ने प्राचीन बौद्ध वाङ्मय से चुनकर ऐसी ही 65 लघु कहानियाँ दी हैं—सबकी सब बहुत ही मनोरंजक और बुद्धिवर्धक। ये कहानियाँ उन्होंने बड़े ही सहज ढंग से लिखी हैं, और इसलिए ये बड़ी ही सरस, सुबोध और सहज पाठ्य बन पड़ी हैं। कहीं कोई दुरूहता नहीं। हिन्दी का सर्वसाधारण पाठक भी इन्हें पढ़कर भरपूर आनन्द ले सकता है।
"डॉ. जगदीशचन्द्र जैन -
उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर ज़िले के बसेड़ा ग्राम में सन् 1909 में जनमे डॉ. जगदीशचन्द्र जैन प्रसिद्ध इतिहासविद् और प्राकृत भाषा साहित्य के अधिकारी विद्वान रहे हैं।
प्रकाशित साहित्य : लगभग चालीस कृतियाँ। प्रमुख हैं—'लाइफ़ इन एन्शिऐंट इण्डिया एज़ डैपिक्टैड इन द जैन कैनन्स' (1947), 'सम्प्रदायवाद' (1950), ‘भारतीय तत्त्व चिन्तन' (1955), 'प्राकृत साहित्य का इतिहास' (1961), 'जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज' (1965), 'जैन साहित्य का बृहद् इतिहास' (1966) तथा 'नैरेटिव लिटरेचर: ओरिजिन एण्ड ग्रोथ' (1981)।
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