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दो नाक वाले लोग

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Do Naak Vale Log
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मैं उन्हें समझा रहा था कि लड़की की शादी में टीमटाम में व्यर्थ खर्च मत करो। पर वे बुजुर्ग कह रहे थे- आप ठीक कहते हैं, मगर रिश्तेदारों में नाक कट जायेगी। नाक उनकी काफ़ी लम्बी थी। मेरा ख्याल है, नाक की हिफाजत सबसे ज़्यादा इसी देश में होती है। और या तो नाक बहुत नर्म होती है या छुरा तेज़ जिससे छोटी-सी बात से भी नाक कट जाती है। छोटे आदमी की नाक बहुत नाजुक होती है। यह छोटा आदमी नाक को छिपाकर क्यों नहीं रखता? कुछ बड़े आदमी, जिनकी हैसियत है, इस्पात की नाक लगवा लेते हैं और चमड़े का रंग चढ़वा लेते हैं। कालाबाज़ार में जेल हो आये हैं। औरत खुले आम दूसरे के साथ 'बॉक्स' में सिनेमा देखती है। लड़की का सार्वजनिक गर्भपात हो चुका है। लोग उस्तरा लिये नाक काटने को घूम रहे हैं। मगर काटें कैसे? नाक तो स्टील की है। चेहरे पर पहले जैसी ही फिट है और शोभा बढ़ा रही है। स्मगलिंग में पकड़े गये हैं। हथकड़ी पड़ी है। बाज़ार में से ले जाये जा रहे हैं। लोग नाक काटने को उत्सुक हैं। पर वे नाक को तिजोरी में रखकर स्मगलिंग करने गये थे। पुलिस को खिला-पिला कर बरी होकर लौटेंगे और नाक फिर पहन लेंगे।
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हरिशंकर परसाई (Harishankar Parsai)

"हरिशंकर परसाई जन्म : 22 अगस्त, 1924 ई., जमानी (इटारसी के पास) मध्य प्रदेश। शिक्षा : नागपुर विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम.ए.। किसी प्रकार की नौकरी का मोह छोड़कर परसाई ने स्वतन्त्र लेखन को ही जीवनचर्या के रूप में चुना। जबलपुर से 'वसुधा' नाम की साहित्यिक मासिक पत्रिका निकाली, घाटे के बावजूद वर्षों तक उसे चलाया, अन्त में परिस्थितियों ने बन्द करने के लिए लाचार कर दिया। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में वर्षों तक नियमित स्तम्भ लिखे- 'नई दुनिया' में 'सुनो भाइ साधो', 'नई कहानियाँ' में 'पाँचवाँ कालम' और ‘उलझी-सुलझी’, ‘कल्पना’ में ‘और अन्त में’ आदि, जिनकी लोकप्रियता के बारे में दो मत नहीं हैं। इसके अतिरिक्त परसाई ने कहानियाँ, उपन्यास एवं निबन्ध भी लिखे हैं। प्रकाशित पुस्तकें : ‘हँसते हैं रोते हैं’, ‘जैसे उनके दिन फिरे’, ‘दो नाक वाले लोग’, ‘रानी नागफनी की कहानी’ (कहानी-संग्रह); ‘तट की खोज’ (उपन्यास); ‘तब की बात और थी’, ‘भूत के पाँव पीछे’, ‘बेईमानी की परत’, ‘पगडंडियों का ज़माना’, ‘सदाचार का ताबीज़’, ‘वैष्णव की फिसलन’, ‘विकलांग श्रद्धा का दौर’, ‘माटी कहे कुम्हार से’, और ‘अन्त में’, ‘हम इक उम्र से वाक़िफ़ हैं’ आदि (निबन्ध-संग्रह) । से सागर विश्वविद्यालय में मुक्तिबोध पीठ के निदेशक रहे, मध्य प्रदेश शासन के शिखर सम्मान से सम्मानित, 1982 में साहित्य अकादेमी पुरस्कार सम्मानित, जबलपुर विश्वविद्यालय द्वारा डी. लिट्., उपाधि से विभूषित । निधन : 10 अगस्त, 1995 " "

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