दुखियारी लड़की - नहीं, में कोई धर्म नहीं मानती में तथाकथित न तबकों को भी नहीं मानती। मेरा धर्म मानवता है। मैंन नारीवादी हूँ, न बौद्धिक समाज की नाइन्साफ़ी औरत-मर्द में विषमता, पुरुष-शासित समाज में औरत को दूसरे दर्जे से भी बदतर नागरिक बनाये जाने से मेरा जी दुखता है।" "ऐसे भी लोग हैं, जो यह मानते हैं कि हिन्दू लोग सभ्य हैं, पढ़े-लिखे और सहनशील हैं, अपने धर्म की आलोचना सह लेते हैं, मुसलमान नहीं सह पाते, क्योंकि वे लोग मूरख और अनपढ़ हैं, असहनशील हैं। दुनिया में सभी धर्मों की आलोचना सम्भव है, सिर्फ़ इस्लाम धर्म की आलोचना असम्भव है-जिन लोगों ने भी यह नियम बनाया है, उन लोगों ने और कुछ भले किया हो, मुसलमानों का भला नहीं कर रहे हैं। मुस्लिम औरतों की मुक्ति की राह में भी वे ही लोग काँटे बिछा रहे हैं। जिस अँधेरे की तरफ उन्हें रोशनी डालनी चाहिए, वहाँ तक रोशनी पहुँचने ही नहीं देते। अगर कोई उस पर रोशनी डाले, तो वे ही लोग, साम-दाम दण्ड-भेद से उसे बुझा देते हैं। "मैंने मुल्ला-मौलवियों के पाखण्ड पर वार किया था, उनकी पोल-पट्टी खोली थी। बाबरी मस्जिद के ध्वंस की प्रतिक्रिया में बंगलादेश में जो दंगे भड़के, उस पर मैंने 'लज्जा' लिखी, उसे ही मेरा गुनाह मान लिया गया। राजनीतिक सत्ता और धार्मिक कट्टरता से बगावत के जुर्म में, मुझ पर फ़तवा लटका दिया गया, मेरी फाँसी की माँग की गयी, यहाँ तक कि मुझे देश-निकाला दे दिया।" "बंगलादेश से प्रकाशित, तुम्हारी 'क' आत्मकथा का तीसरा खण्ड ज़ब्त कर लिया गया। उसमें ऐसा क्या है, जो लोग भड़क गये?" तसलीमा हँस पड़ी, "उसमें मैंने उन साहित्यकारों, पत्रकारों, अफ़सरों और समाज-सेवकों के बखिये उधेड़ हैं, जिन्होंने मुझ पर घिरे संकट का फ़ायदा उठाते हुए, मुझसे सेक्स सम्बन्ध स्थापित किये।" -इसी पुस्तक से
तसलीमा नसरीन तसलीमा नसरीन ने अनगिनत पुरस्कार और सम्मान अर्जित किए हैं, जिनमें शामिल हैं-मुक्त चिन्तन के लिए यूरोपीय संसद द्वारा प्रदत्त-सखारव पुरस्कार; सहिष्णुता और शान्ति प्रचार के लिए यूनेस्को पुरस्कार; फ्रांस सरकार द्वारा मानवाधिकार पुरस्कार; धार्मिक आतंकवाद के ख़िलाफ़ संघर्ष के लिए फ्रांस का एडिट द नान्त पुरस्कार; स्वीडन लेखक संघ का टूखोलस्की पुरस्कार; जर्मनी की मानववादी संस्था का अर्विन फिशर पुरस्कार; संयुक्त राष्ट्र का फ्रीडम नाम रिलिजन फाउण्डेशन से फ्री थॉट हीरोइन पुरस्कार और बेल्जियम के मेंट विश्वविद्यालय से सम्मानित डॉक्टरेट! वे अमेरिका की ह्युमैनिस्ट अकादमी की ह्यूमैनिस्ट लॉरिएट हैं। भारत में दो बार, अपने ‘निर्वाचित कलाम' और 'मेरे बचपन के दिन' के लिए वे ‘आनन्द पुरस्कार' से सम्मानित। तसलीमा की पस्तकें अंग्रेज़ी, फ्रेंच, इतालवी, स्पैनिश. जर्मन समेत दुनिया की तीस भाषाओं में अनूदित हुई हैं। मानववाद, मानवाधिकार, नारी-स्वाधीनता और नास्तिकता जैसे विषयों पर दुनिया के अनगिनत विश्वविद्यालयों के अलावा, इन्होंने विश्वस्तरीय मंचों पर अपने बयान जारी किए हैं। 'अभिव्यक्ति के अधिकार' के समर्थन में, वे समूची दुनिया में, एक आन्दोलन का नाम बन चुकी हैं। कल्लोल चक्रवर्ती अनुवादक का परिचय इक्कीस साल से अमर उजाला के सम्पादकीय पेज पर कार्यरत। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ और पुस्तक समीक्षा प्रकाशित। पाँच साल से तसलीमा नसरीन के लेखों का बांग्ला से हिन्दी में अनुवाद। अंग्रेज़ी से हिन्दी में अनुवाद का कार्य। ई-मेल : kc5068@gmail.com