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Vani Prakashan

द्विखंडित

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इस्लाम धर्म में महिलाओं के शोषण और दमन की बात कहनी चाही है। इसकी जरूरत भी थी। पाश्चात्य देशों में ऐसे बहुत भाषण वीर हैं। जो अब तक यही करते आये है कि मुस्लिम देशों में औरतों का शोषण होता ही नहीं- अगर होता भी हो तो उसमें धर्म का हाथ नहीं होता। उनकी बात मान लेने पर यकीन करना होगा कि औरतों के यौन शोषण से इस्लाम का कोई सम्पर्क नहीं है। किताबों में शायद ऐसा ही होगा, लेकिन इसमें मुल्लाओं का हाथ होने से इनकार नहीं किया जा सकता। इसके अलावा हर घर में औरतों के दमन के असंख्य उदाहरण मिलेंगे। कई देशों में कानून भी स्त्री-पुरुषों के बीच बराबरी का व्यवहार नहीं करता। वहीं किसी पुरुष की गवाही औरत की गवाही से ज्यादा विश्वसनीय समझी जाती है। मुस्लिम देशों में नौकरियों में भी औरतों को कई प्रकार के शोषण का शिकार होना पड़ता है। इससे ज्यादा क्या कहूँ।

हिन्दू धार्मिक कट्टरपन्थियों द्वारा अयोध्या में एक मस्जिद गिराये जाने पर हिन्दुओं पर (बांग्लादेश में जो अत्याचार हुआ था, आपने उसका विरोध किया था। इसीलिए आपके उपन्यास 'लज्जा' को कट्टरपन्थियों ने अपना निशाना बनाया और आपका जीवन भी खतरे में पड़ गया। कोई भी समझदार व्यक्ति स्वीकार करेगा कि. असहाय अल्पसंख्यक हिन्दुओं पर ऐसा धर्मान्ध आक्रमण निन्दनीयः है उतना ही निन्दनीय अल्पसंख्यक मुसलमानों पर हिन्दुओं का अत्याचार था। समानता के नजरिये को धार्मिक कट्टरपन्थी अपना निशाना बनाते हैं। आपका समर्थन करते हुए हम सभी लोग इस समानता के नजरिये का भी समर्थन कर रहे हैं। 'कुरान' में संशोधन करने की जरूरत है। यह कहने कि लिए आपको दोषी ठहराया गया है (जबकि आपने सिर्फ शरीयत को बदलने की ही बात की है।) शायद आपकी नजर पड़ी होगी, पिछले सप्ताह तुर्की में सरकार ने शरीयत बदलने का निश्चय किया है इसीलिए कहता हूँ, यह माँग आपकी अकेले की नहीं है। एक और बात कहने की जरूरत है-स्त्रियों के अधिकारों की रक्षा के लिए अगर सम्पूर्ण कुरान बदलने की माँग आप करतीं, और आपकी इस बात का विरोध अगर हर मुसलमान करता, तब भी यह मांग विधिसम्मत होती, न्याय की मांग होती। यह मानना पड़ेगा कि आपकी इस माँग के लिए जो समाज आपको जेल में बन्द करना चाहता है, वह समाज भी अभी तक स्वतन्त्र नहीं हो पाया है। धार्मिक कट्टरपन्थी हर बात का कुरान के दायरे में समाधान चाहते हैं। इसके अलावा वे अन्धविश्वासी भी हैं। सीधी बात है, अगर कोई कहता है कि ईश्वर या ख़ुदा है' तो दूसरा भी यह बात कह सकता है कि 'ईश्वर या ख़ुदा नहीं है। अगर कोई यह कहे कि 'मैं इस पुस्तक से घृणा करता है, तो कोई यह भी कह सकता है कि 'मैं इस पुस्तक की बहुत पसन्द करता हूँ। किसी को एक ही सत्य में विश्वास करने के लिए विवश करने से उलझनें बढ़ती हैं। उस सत्य तक पहुंचने के एकमात्र मार्ग पर यकीन करना उलझनों को जन्म देता है। जो लोग इस एक ही मार्ग की बात स्वीकार नहीं कर पाते, उनकी हत्या करना इस चरमतम उलझन भरी मानसिकता की ही देन है।

-सलमान रुश्दी

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9788181431634
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तसलीमा नसरीन (Taslima Nasrin)

तसलीमा नसरीन तसलीमा नसरीन ने अनगिनत पुरस्कार और सम्मान अर्जित किए हैं, जिनमें शामिल हैं-मुक्त चिन्तन के लिए यूरोपीय संसद द्वारा प्रदत्त-सखारव पुरस्कार; सहिष्णुता और शान्ति प्रचार के लिए यूनेस्को पुरस्कार; फ्रांस सरकार द्वारा मानवाधिकार पुरस्कार; धार्मिक आतंकवाद के ख़िलाफ़ संघर्ष के लिए फ्रांस का एडिट द नान्त पुरस्कार; स्वीडन लेखक संघ का टूखोलस्की पुरस्कार; जर्मनी की मानववादी संस्था का अर्विन फिशर पुरस्कार; संयुक्त राष्ट्र का फ्रीडम नाम रिलिजन फाउण्डेशन से फ्री थॉट हीरोइन पुरस्कार और बेल्जियम के मेंट विश्वविद्यालय से सम्मानित डॉक्टरेट! वे अमेरिका की ह्युमैनिस्ट अकादमी की ह्यूमैनिस्ट लॉरिएट हैं। भारत में दो बार, अपने ‘निर्वाचित कलाम' और 'मेरे बचपन के दिन' के लिए वे ‘आनन्द पुरस्कार' से सम्मानित। तसलीमा की पस्तकें अंग्रेज़ी, फ्रेंच, इतालवी, स्पैनिश. जर्मन समेत दुनिया की तीस भाषाओं में अनूदित हुई हैं। मानववाद, मानवाधिकार, नारी-स्वाधीनता और नास्तिकता जैसे विषयों पर दुनिया के अनगिनत विश्वविद्यालयों के अलावा, इन्होंने विश्वस्तरीय मंचों पर अपने बयान जारी किए हैं। 'अभिव्यक्ति के अधिकार' के समर्थन में, वे समूची दुनिया में, एक आन्दोलन का नाम बन चुकी हैं। कल्लोल चक्रवर्ती अनुवादक का परिचय इक्कीस साल से अमर उजाला के सम्पादकीय पेज पर कार्यरत। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ और पुस्तक समीक्षा प्रकाशित। पाँच साल से तसलीमा नसरीन के लेखों का बांग्ला से हिन्दी में अनुवाद। अंग्रेज़ी से हिन्दी में अनुवाद का कार्य। ई-मेल : kc5068@gmail.com

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