एक ऐसी दुनिया की तलाश में
एक ऐसी दुनिया की तलाश में -
हिन्दी की नयी रचनाशीलता के एक प्रतिनिधि श्री अरुण शीतांश का यह कविता संग्रह 'एक ऐसी दुनिया की तलाश में' सम्पन्न उद्यम है, जहाँ 'साधों के नये-नये अंकुर उगेंगे। अरुण शीतांश का यह पहला कविता संग्रह नैसर्गिक प्रतिभा, वैचारिक प्रतिबद्धता एवं भविष्य के स्वप्नों का जीवन्त प्रकाश है। अपने बचपन की मृदुल स्मृतियों से लेकर अभी के 'खूनी' समय तक के गहरे निशान यहाँ मिलते हैं। सितुहा, सिंघा, दउरी, अहरा, मचान, आलता जैसे अनेक उपकरणों-प्रसंगों के माध्यम से शीतांश ने उन दिनों को, उस निरन्तर ओझल हो रहे समय को पकड़ने की कोशिश की है जो दिन सबसे अच्छे थे। इस क्रम में कवि ने अनेक नये शब्दों का व्यवहार किया है जो भाषा के प्रति उसकी सजगता को तो दर्शाता ही है, साथ ही साथ जो स्वयं समकालीन कविता के शब्द-भंडार में उल्लेखनीय अंशदान भी है। 'माँ' और 'रात' इन कविताओं के दो महत्त्वपूर्ण सम्बल हैं। कई बार तो कोई कविता विस्मयकारी तरीक़े से अपना प्रभाव छोड़ती है, जैसे- 'साँवली रात' जिसका रोमान और लिरिकल संवेग स्वयं शीतांश की कविताओं में भी अन्यत्र दुर्लभ है। यह सही है कि हर बार कवि को ऐसी ही सफलता नहीं मिलती। फिर भी ऐसी कविताओं में भी जहाँ सीधे तथ्यों को आधार बनाया गया है, जैसे- 'बाथे नरसंहार' या 'कैदी के लिए' सरीखी कविताओं में, वहाँ भी कविता की निजी शक्ति प्रायः खण्डित नहीं होती क्योंकि वहाँ जीवन तथ्य स्वयं सहारा हैं, 'जीवन इतना भरपूर'। सामाजिक विषमता, राजनीतिक भ्रष्टाचार एवं सांस्कृतिक पतन पर कवि का दुर्दम प्रहार आश्वस्त करता है कि बराबरी और न्याय के आदर्श अभी समाप्त नहीं हुए हैं।
अरुण शीतांश का यह संग्रह सुधी पाठकों को अपनी ओर आकर्षित करेगा और इसकी अपूर्व कविताएँ काव्य प्रेमियों को नयी सम्पन्नता देंगी, ऐसी कामना है। -अरुण कमल
Publication | Vani Prakashan |
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