एक दुनिया है असंख्य - वृद्ध माँ की नींद और डेढ़ बरस की बेटी के भविष्य से लेकर ग्राहकों के लिए मुर्गे काटते आठ बरस के लड़के और बग़दाद के बमों के धमाकों में फँसी जुड़वाँ बहनों तक फैला युवा कवि सुन्दर चन्द ठाकुर की कविता का फलक क़ाफ़ी व्यापक है। उनकी कविता अतीत और वर्तमान के चौराहों को खुले और हवादार घरों की तरह देखती है और ख़ुद अपनी ही संवेदना के रूपक की तरह लगती है, जहाँ से कई रास्ते फूटते हैं, और जीवन जैसा भी हो, अच्छा या बुरा, अपने विविध और विस्मयकारी रूपों में गतिशील होता है। अपने पिछले सग्रह 'किसी रंग की छाया' (2001) से एक विशिष्ट पहचान बना चुके कवि का यह नया संग्रह उनकी काव्यात्मक संवेदना में निरन्तर आ रही विकासशीलता, परिपक्वता और बेचैनी की ओर एक सार्थक संकेत करता है। उनकी पिछली कविताओं में जो आवेग और गहरा सकारात्मक रूमान था, वह अब एक बौद्धिक साक्षात्कार की शक्ल ले चुका है और उसके सरोकार मुक्तिबोध शैली के 'ज्ञानात्मक संवेदन' तक विस्तृत हुए हैं।
"सुन्दर चन्द ठाकुर -
जन्म: 11 अगस्त, 1968 को उत्तरांचल के पिथौरागढ़ ज़िले के एक गाँव में। कुमाऊँ विश्वविद्यालय से विज्ञान में स्नातक। 1992 से 1997 तक सेना में कार्य, फिर ऐच्छिक सेवानिवृत्ति।
प्रकाशन एवं पुरस्कार: कविता-संग्रह 'किसी रंग की छाया' (2001) पर भारतीय भाषा परिषद, कोलकाता का 'युवा पुरस्कार', 'भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार', 2003। अब तक 10 कहानियाँ प्रकाशित। कुछ कविताएँ बांग्ला, अंग्रेज़ी, जर्मन आदि भाषाओं में अनूदित। येव्तुशेंको की आत्मकथा 'अ प्रिकॉशस ऑटोबायग्राफ़ी', 'एक अजब दास्ताँ' शीर्षक से प्रकाशित।
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