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Vani Prakashan

एक कवि को माँगनी होती है क्षमा कभी न कभी (कवि का गद्य)

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"चन्द्रकान्त कवि-मनुष्य हैं। उनकी सोच कविता की सोच है, उनकी दृष्टि कविदृष्टि है। उनकी ऊर्जा का केन्द्र कविता है। विषय चाहे जो भी हो, चन्द्रकान्त उसे अपने अन्तस की रोशनी में ही देखते-परखते हैं। कविता की रोशनी से ही कोई भी विषय, विचार, विधान आलोकित होता है। केन्द्र में कविता है। वह विचारधारा की तरह चश्मा नहीं है । कविता की दृष्टि से देखने पर दृष्टिकोण ही बदल जाता है। जीवन का साक्षात्कार कविता की भाषा से होता है वैसा आम भाषा से नहीं होता। कवि का गद्य भी इस सही भाषा की तलाश है। वह नया नज़रिया देता है ज़िन्दगी और दुनिया को देखने का । चन्द्रकान्त का गद्य यही करता है इसलिए भी उसे कवि का गद्य कहना वाज़िब लगता है । कवि का गद्य वह होता है जिसमें कवि के व्यक्तित्व की सहज प्रतीति होती है, चन्द्रकान्त के गद्य में ईमानदारी, पारदर्शिता, सह-अनुभव और दोस्ती के अन्दाज़ की गन्ध है । साफ़गोई, संवेदनशीलता, सहजता, विनोदप्रियता, अपनापा आदि गुणों ने उसमें चार चाँद लगाये हैं। वह अपने जीवन में और जीवन के ख़ास क्षणों में पाठक या श्रोता को शामिल कर विश्वास जगाते हैं। यह अन्तरंगता इस गद्य को कवि का गद्य बना देती है, कवि के साथ वह चिन्तक, अध्यापक, श्रोता, वक्ता, पति, पिता, पुत्र, भाई, मित्र, चित्रकार, रसिक, शिष्य, गुरु, नागरिक आदि कई रूपों में हमारे सामने आते हैं और दिमाग़ पर छा जाते हैं। विना गम्भीरता और सभ्यता की खोये । - भूमिका से "
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9789390678600
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Vani Prakashan
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चंद्रकांत देवताले (Chandrakant Deotale)

"चन्द्रकान्त देवताले - जौलखेड़ा (जिला बैतूल), म. प्र., में 7 नवम्बर, 1936 को जन्म। होल्कर कॉलेज, इन्दौर से 1960 में हिन्दी साहित्य में एम.ए. । सागर विश्वविद्यालय से मुक्तिबोध पर 1984 में पी-एच. डी. । छात्र जीवन में 'नई दुनिया', 'नवभारत' सहित अन्य अखबारों में कार्य। 1961 से 1996 तक म. प्र. शासन, उच्च-शिक्षा विभाग में अध्यापन । पहली कविता नर्मदा-तट के कस्बे बड़वाह में, 1952। '60 के बाद पत्र-पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशन। अशोक वाजपेयी द्वारा संपादित 'पहचान' सीरीज़ में प्रकाशित ‘हड्डियों में छिपा ज्वर' (1973), तथा ‘दीवारों पर खून से' (1975), 'लकड़बग्घा हँस रहा है' (1980), 'रोशनी के मैदान की तरफ' (1982), 'भूखण्ड तप रहा है' (1982), 'आग हर चीज़ में बताई गई थी' (1987) और 'पत्थर की बैंच' (1996) कविता संग्रह । विष्णु खरे-चन्द्रकान्त पाटील द्वारा संपादित संचयन 'उसके सपने' (1997)। समकालीन साहित्य के बारे में अनेक लेख, विचार-पत्र तथा टिप्पणियाँ प्रकाशित। अनुवाद में रुचि । अंग्रेजी, मलयालम, मराठी से कविताओं के हिन्दी अनुवाद | मराठी से 'दिलीप चित्रे की कविताएँ' अनुवाद प्रकाशित । कविताओं के अनुवाद प्रायः सभी भारतीय भाषाओं और कई विदेशी भाषाओं में भी । महत्वपूर्ण अंग्रेजी, जर्मन, बँगला, उर्दू तथा मलयालम अनुवाद-संकलनों में कविताएँ। लम्बी कविता 'भूखण्ड तप रहा है' तथा संकलन 'उसके सपने' का मराठी में अनुवाद । प्रमुख हिन्दी कविता संकलनों में कविताएँ। 'आवेग' के अतिरिक्त अन्य लघु पत्रिकाओं से सम्बद्ध । ब्रेख्त की कहानी 'सुकरात का घाव' का नाट्य रूपान्तरण । सृजनात्मक लेखन के लिए 'मुक्तिबोध फैलोशिप' तथा 'माखनलाल चतुर्वेदी कविता पुरस्कार' से सम्मानित । वर्ष '86-87 में म. प्र. शासन का 'शिखर सम्मान'। उड़ीसा की 'वर्णमाला साहित्य संस्था' द्वारा 1993 में 'सृजन भारती' सम्मान। 1999-2000 का अ. भा. मैथिलीशरण गुप्त सम्मान । म. प्र. साहित्य परिषद के उपाध्यक्ष के अतिरिक्त नेशनल बुक ट्रस्ट, राजा राममोहन राय लाइब्रेरी फाउण्डेशन, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान आदि के सदस्य। केन्द्रीय साहित्य अकादेमी के भी सदस्य रहे। 1987 में भारतीय कवियों के प्रतिनिधि-दल के साथ अन्तर्राष्ट्रीय प्रेमिओ लित्तेरारिओ मोंदेल्लो, पालेर्मो (इटली) साहित्य समारोह में शिरकत । शासकीय कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय, इन्दौर में हिन्दी विभागाध्यक्ष तथा डीन, कला संकाय, देवी अहिल्याबाई विश्वविद्यालय, इन्दौर के पदों से सेवा-निवृत्ति के बाद स्वतंत्र लेखन तथा पत्रकारिता । "

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