फसल - यह स्टालिन युग के सोवियत संघ का एक बहुत ही दिलचस्प उपन्यास है जब द्वितीय महायुद्ध के बाद राष्ट्रीय पुनर्निर्माण का काम ज़ोर पर था। महायुद्ध में घायल वासिली बोर्तानिकोव स्वस्थ हो कर दो वर्ष के बाद अपने गाँव पहुँचता है तो पाता है कि उसकी पत्नी किसी और के साथ रह रही है। इसके साथ ही शुरू होता है एक द्वन्द्वपूर्ण जीवन और उसके समानान्तर सामूहिक खेती के प्रयोग को सफल बनाने का सामूहिक उद्यम। रूसी गाँव की रंगारंग ज़िन्दगी का इन्द्रधनुषी चित्रण करते हुए उपन्यास जैसे-जैसे आगे बढ़ता है, तमाम तरह के स्त्री और पुरुष पात्र सामने आते हैं जो मानव मनोविज्ञान पर लेखिका की अच्छी पकड़ का परिचायक है। वासिली और उसकी पत्नी अवदोत्या, जो अन्ततः घर लौट आती है, का विकास एक कुशल नेता के रूप में होता है, नवविवाहित आन्द्रेई और वालेंतिना ज़िले की प्रगति के लिए जान लड़ा देते हैं और युवा फ्रोस्या तो जैसे ऊर्जा की अक्षय खान है। कथानक का वह हिस्सा तो बहुत ही मार्मिक है जिसमें कम्युनिस्ट बनने की प्रक्रिया का जीवन्त चित्रण किया गया है। गालिना निकोलायेवा को इस बहुचर्चित रूसी उपन्यास पर 'स्टालिन पुरस्कार' प्राप्त हुआ था। बहुत ही प्रवाहपूर्ण भाषा में इसका अनुवाद किया है प्रसिद्ध कथाकार यशपाल ने, जो स्वयं भी एक प्रतिबद्ध कम्युनिस्ट लेखक थे।
गालिना निकोलायेवा -
पूर्व सोवियत संघ में समाजवादी यथार्थवाद की सबसे शक्तिशाली लेखिका गालिना एबजेनिएब्ना निकोलायेवा (1911-1965) का जीवन समाजवादी रूस के निर्माण के साथ गहराई से जुड़ा हुआ था। उनके जीवन का एक बड़ा हिस्सा सामूहिक खेती का प्रयोग कर रहे एक गाँव में गुज़रा था इसलिए इन गाँवों के लोगों की जीवन शैली का चाक्षुष और आत्मीय वर्णन इनके लेखन में मिलता है। गालिना का पहला कविता संग्रह आग से गुज़रते हुए 1946 में प्रकाशित हुआ था। पार्टी के निर्देश पर वे गद्य लेखन की ओर मुड़ीं और उनका पहला उपन्यास फसल 1950 में प्रकाशित हुआ। इसे अगले ही साल साहित्य के स्टालिन पुरस्कार से नवाजा गया। उनके एक अन्य उपन्यास का नाट्य रूपान्तर बरसों तक मॉस्को तथा अन्य शहरों में मंचित होता रहा। गालिना के लेखन में सम्बन्धों और भावनाओं के तीव्र रूप प्रगट हुए हैं, इसलिए भी वह समाजवादी यथार्थवाद की नीरसता से मुक्त तथा अत्यन्त पठनीय है।