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Vani Prakashan

फिल्मक्षेत्रे रंगक्षेत्रे

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बीसवीं शताब्दी के हिन्दी के विख्यात उपन्यासकार अमृतलाल नागर के गद्यशिल्प की बहुरंगी-छटा के दर्शन उनकी कहानियों, नाटकों, रेखाचित्रों, संस्मरणों, हास्य-व्यंग्य एवं बाल साहित्य आदि में होते हैं। साहित्य के अतिरिक्त उनकी सिनेमा तथा नाट्य कला में गहरी पैठ थी, किन्तु पाठकों के समक्ष वह अधिक उजागर होकर नहीं आ पाई। नाट्य-कला से सम्बन्धित प्रायः सभी विधाओं के मर्म को नागरजी ने बड़ी सूक्ष्मता के साथ आत्मसात् किया था। सिनेमा की पटकथा एवं संवाद लेखन तथा रंगमंच, रेडियो एवं दूरदर्शन के नाट्य लेखन तथा प्रस्तुति-शिल्प में वे सिद्धहस्त थे।

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9788181430274
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अमृतलाल नागर (Amrutlal Naagar)

नागरजी का जन्म 17 अगस्त, 1916 को आगरा में हुआ। लखनऊ में शिक्षा प्राप्त की और फिर वहीं बस गये। तस्लीम लखनवी, मेघराज, इंद्र आदि उपनामों से भी लेखन किया है। बंगला, तमिल, गुजराती और मराठी भाषाओं के ज्ञाता। उनकी रचनाओं में ‘वाटिका’, ‘अवशेष’, ‘नवाबी मसनद’, ‘तुलाराम शास्त्री’, ‘एटम बम’, ‘एक दिल हजार दास्ताँ’, ‘पीपल की परी’, नामक कहानी-संग्रह; ‘महाकाल’, ‘सेठ बाँकेमल’, ‘बूँद और समुद्र’, ‘शतरंज के मोहरे’, ‘अमृत और विष’ आदि उपन्यास, ‘गदर के फूल’, ‘ये कोठेवालियाँ’ आदि शोधकृतियाँ तथा बाल-साहित्य की ‘नटखट चाची’, ‘निंदिया आजा’ आदि उल्लेखनीय हैं। अन्य महत्त्वपूर्ण कृतियों में तुलसी के जीवन पर आधारित महाकाव्यात्मक उपन्यास ‘मानस का हंस’; हास्य-व्यंग्य संग्रह ‘कृपया दाएँ चलिये’, ‘भरत पुत्र नौरंगीलाल’ तथा संस्मरण-संग्रह ‘जिनके साथ जिया’ प्रमुख हैं। नागरजी साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत हुए और उनकी अनेक कृतियाँ उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा भी पुरस्कृत हुई हैं। निधन: 23 फरवरी, 1990

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