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Vani Prakashan
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"मनीषा डागा की नवीन कविताएँ अपनी भावभूमि और भाषा की ताज़गी से एकबारगी चौंका देती हैं। कविताओं में बदलते मूड बारीकी से उकेरे गये हैं। सोना गेरू का विषय एकदम हट कर है। इसी तरह दूसरे ध्रुव पर अज्ञेय की कविता के प्रभाव को पकड़ने की कोशिश है । एक कवि के लिए अकेलापन, बारिश, कोरा कागज़ और क़लम कितनी अहमियत रखते हैं, जानकर हम कवि के साथी बन जाते हैं। संवेदनशील मन को ये कविताएँ बाँध लेंगी, ऐसा मेरा यक़ीन है ।
- ममता कालिया
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हिन्दी की प्रख्यात कवि मनीषा डागा का यह कविता-संग्रह जीवन के कुछ नये, अनछुए अनुभवों, प्रसंगों और भाव-ध्वनियों को नये रूपाकारों में प्रस्तुत करता है। मनीषा जी ने कविता और कहन की नयी वीथियों की खोज की है जिसका एक विलक्षण उदाहरण वर्षा की शाम पर रचित उनकी कविता है जहाँ जल के भार से नत पत्ते भी कुछ उदास से लगते हैं । गहन इन्द्रियबोध से सम्पन्न ये कविताएँ स्मृतियों के अनेक स्तरों का उत्खनन करती हैं। कहा जा सकता है कि मनीषा डागा की कविताओं की समृद्धि उनकी स्मृतियों की देन है । यहाँ नानी से सम्बन्धित एक कविता बरबस याद आ जाती है। यह उनकी सर्वाधिक मार्मिक कविताओं में एक है। स्मृतियाँ कोई ‘प्रवासी पक्षी' तो हैं नहीं कि एक नियत समय पर ही आयें। मौन, अस्फुट प्रेम-भाव और करुणा उनकी कविता के अन्य उपादान हैं जिन्हें उनकी सभी कविताओं में किसी न किसी रूप में चिह्नित किया जा सकता है। ‘अज्ञेय को पढ़ते हुए ' इन तत्त्वों का सहज समाहार करती है । सबसे बड़ी बात यह है कि मनीषा डागा सम्पूर्ण मानवता के प्रतिनिधि के रूप में सबकी ओर से बोलती हैं। घर-परिवार, अड़ोस-पड़ोस और सम्पूर्ण मानव जगत की पीड़ा का अंकन करती हुई ये कविताएँ कहीं भी अपनी काव्य प्रतिज्ञा से विचलित नहीं होतीं। इन कविताओं का भाषिक गठन, शिल्प सौष्ठव और तरल लयात्मकता इन्हें विशिष्टता प्रदान करती है । कविताओं में गहराई है, कहीं भी सपाटता या वाचालता नहीं है। ये स्वयंभू कविताएँ हैं क्योंकि इन पर किसी का प्रभाव लक्षित नहीं होता । कवि के निजी अनुभव और साधना से प्रसूत ये कविताएँ समकालीन कविता के लिए अनेक द्वार खोलती हैं । आशा है कि सहृदय पाठक इन्हें अपना स्नेह और समर्थन प्रदान करेंगे।
- अरुण कमल
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ISBN
9789362876737
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Vani Prakashan
Publication | Vani Prakashan |
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