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Vani Prakashan

गद्य-गरिमा (Textbook)

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हिन्दी साहित्य का आधुनिक काल गद्य युग कहलाता है। आधुनिक युग से पूर्व हिन्दी साहित्य में पद्य का प्राधान्य था। पाश्चात्य प्रभाव, मुद्रण कला के विकास और ज्ञान-विज्ञान के विविध क्षेत्रों में प्रगति ने आधुनिक हिन्दी साहित्यकारों को गद्य के विभिन्न रूपों में लिखने की प्रेरणा दी। ऐतिहासिक दृष्टि से आधुनिक काल से पूर्व हिन्दी गद्य लेखन के प्रयास ब्रजभाषा और राजस्थानी गद्य में मिलते हैं। फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना, ईसाई धर्म प्रचारकों और आर्य समाज तथा ब्रह्म समाज के समाज सुधारों से हिन्दी गद्य के विकास में सहायता मिली लेकिन हिन्दी गद्य को सुनिश्चित दिशा और स्वरूप भारतेन्दु के आगमन से ही मिला।

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (1850-1885 ई.) ने 'कविवचनसुधा' और 'हरिश्चन्द्र मैगज़ीन' नामक पत्रिकाएँ प्रकाशित कीं। इन पत्रिकाओं के माध्यम से भारतेन्दु और उनके सहयोगी लेखकों पं. प्रतापनारायण मिश्र, बालकृष्ण भट्ट, बद्रीनारायण चौधरी 'प्रेमघन', लाला श्रीनिवास दास, पं. राधाचरण गोस्वामी एवं राधाचरण दास आदि ने विविध गद्य विधाओं में लिखकर हिन्दी गद्य के स्वरूप का निर्माण किया। 'बालाबोधिनी', 'प्रदीप', 'ब्राह्मण' इस युग की अन्य प्रसिद्ध पत्रिकाएँ हैं। इन पत्रिकाओं में अपने युग की आर्थिक-सामाजिक एवं राजनीतिक समस्याओं को आधार बनाकर इन रचनाकारों ने नाटक आदि परम्परागत गद्य-रूपों के अतिरिक्त कहानी, उपन्यास, आलोचना, निबन्ध, जीवनी, आत्मकथा आदि नये-नये गद्य-रूपों की रचना की।

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