योगिता यादव का नाम आज हिन्दी साहित्य में न नया है और न अनजाना। पढ़ने में ये कहानियाँ सरल भाषा की डगर पर ही चलती हैं। मेरे लिये यह सुकून का विषय रहा कि कहानियों के जरिये लेखकों और लेखिकाओं के फैलाये विशिष्ट वाग्जाल से बची और कहानियाँ सरलता के साथ पढ़ पायी। यह सब मैं अपने लिये ही नहीं कह रही, यहाँ मुझे उन पाठकों का ध्यान है जो लेखक की विद्वता को देखकर भ्रमित हो जाते हैं और क्लिष्ट दुरूह भाषा से सहमकर किताब परे रख देते हैं। शिल्प की लाख दुहाइयाँ देते रहिये, ज्यादातर पाठक भाषा की सादगी और कहन के साधारणीकरण के बस में रहते हैं। मुझे लगता है, विसंगति और विरोधाभास, द्वन्द्व और संघर्ष के इस समय में ग़लत पते की चिट्ठियाँ सही पतों पर पहुंचेंगी और अपना सार्थक सन्देश पहुँचायेंगी।
"योगिता यादव -
जन्म: 1981, दिल्ली में।
शिक्षा: बी.ए. ऑनर्स (राजनीति विज्ञान) दिल्ली विश्वविद्यालय से। वाइ.एम.सी.ए. से हिन्दी पत्रकारिता में डिप्लोमा।
प्रकाशन: वर्ष 2005 से निरन्तर लेखन। हंस, नया ज्ञानोदय, प्रगतिशील, वसुधा आदि प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में कविताएँ एवं कहानियाँ प्रकाशित।
जम्मू के सांस्कृतिक वृत्त पर विशेष कार्य हेतु वर्ष 2009 में संस्कृति मन्त्रालय से जूनियर फ़ेलोशिप। "