Publisher:
Vani Prakashan

गल्प का यथार्थ कथालोचन के आयाम

In stock
Only %1 left
SKU
9789350002896
Rating:
0%
As low as ₹320.00 Regular Price ₹400.00
Save 20%

गल्प का यथार्थ कथालोचन के आयाम - 
हिन्दी में कथा साहित्य का जैसा अद्भुत विकास दिखाई देता है, उसकी तुलना में कथा की आलोचना का विकास नहीं हुआ है। नयी पीढ़ी के कहानीकारों की तो एक प्रमुख शिकायत ही यह है कि उनकी रचनाशीलता पर पर्याप्त विचार नहीं हो रहा है। सुवास कुमार की यह नयी आलोचना पुस्तक न केवल इस समस्या पर विचार करती है, बल्कि सैद्धान्तिक और व्यावहारिक, दोनों स्तरों पर कथालोचन के नये प्रतिमान और औज़ार भी गढ़ती है। इस सिलसिले में कथा के विधात्मक स्वरूप की खोज से शुरू कर सुवास कुमार की यात्रा आज की कथा के इन्द्रधनुषी परिदृश्य तक जाती है। बीच में अनेक महत्त्वपूर्ण पड़ाव आते हैं यथार्थवाद का यथार्थवादी प्रतिमान की प्रासंगिकता, हिन्दी कथा साहित्य का स्वभाव, परिवार-समाज-देश और मनुष्य तथा हिन्दी की महत्त्वपूर्ण कथा कृतियों पर एक नयी, चौकन्नी नज़र सुवास कुमार की आलोचनात्मक दृष्टि की सबसे बड़ी ख़ूबी है उसका खुलापन और व्यापकता। वे न किसी बाद से बँधे हुए हैं और न किसी अन्य पूर्वग्रह से। इसके बावजूद उनकी प्रतिबद्धताएँ किसी से कम गहरी नहीं हैं। सुवास कुमार की यही निर्मल और बेबाक शैली प्रेमचन्द, रेणु, परसाई, श्रीलाल शुक्ल, ज्ञानरंजन, गोविंद मिश्र आदि के कथा स्वभाव को समझने और उसका मूल्यांकन करने में प्रगट होती है। "यह सच है कि प्रेमचन्द हिन्दी कथा साहित्य के उदय-शिखर हैं, लेकिन उनके बाद भी आलोक प्रखरतर हुआ, इसमें सन्देह नहीं।" - जैसा वाक्य लिखने के लिए जिस ईमानदार साहस की ज़रूरत है, वह सुवास कुमार के इन पारदर्शी लेखों में सहज ही जगह-जगह दिखाई देता है। इसी साहस के बल पर वे कूड़े को कूड़ा कहने से भी नहीं हिचकते, इसके बावजूद कि हर नये-पुराने लेखक को उनकी पर्याप्त सहानुभूति मिली है।

ISBN
9789350002896
Publisher:
Vani Prakashan
More Information
Publication Vani Prakashan
सुवास कुमार (Suvas Kumar)

"सुवास कुमार - जन्म : 3 जुलाई, 1948 (बिहार)। शिक्षा : एम.ए. (स्वर्ण पदक प्राप्त), पीएच.डी. 1964-65 से लेखन कार्य हिन्दी तथा मैथिली में हिन्दी में पहली कविता 1964 में 'कल्पना' (हैदराबाद) में तथा पहली कहानी 1966 में 'ज्ञानोदय' (कलकत्ता) में प्रकाशित। तब से हिन्दी की सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ निरन्तर प्रकाशित। विक्रमशिला कॉलेज कहलगाँव, बी.बी. कॉलेज - आसनसोल, बद्धमान विश्वविद्यालय, हैदराबाद विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य 1996 से 1998 तक दि युनिवर्सिटी ऑफ़ दि वेस्ट इंडीज़ के सेंट ऑगस्टीन कैम्पस (ट्रिनिडाड) में हिन्दी के विज़िटिंग प्रोफ़ेसर रहे। लौटकर हैदराबाद विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफ़ेसर एवं अध्यक्ष का कार्य सँभाला। फिलहाल वहीं प्रोफ़ेसर। प्रकाशित कृतियाँ : मध्यकालीन फ़ैटेसी : सूरदास और चण्डीदास का काव्य, 1987, आधुनिक हिन्दी कविता : आत्मनिर्वासन और अकेलेपन का सन्दर्भ, 1989; आंचलिकता, यथार्थवाद और फणीश्वरनाथ रेणु (समीक्षा), 1992; अन्य रस तथा अन्य कहानियाँ, (कहानी संकलन), 1992; कविता में आदमी (कविता संकलन), 1992; साहित्यिक समझ, विवेक तथा प्रतिबद्धता (आलोचना), 1993.; हिन्दी विविध व्यवहारों की भाषा, 1994; आधुनिक बंगला कविता (अनुवाद), 1994; फणीश्वरनाथ रेणु संचयिता, 2003; देशी-विदेशी गुड़िया (कहानी संग्रह), 1997; वेस्ट इंडीज का साहित्य (अनुवाद: 2007), यहाँ एक नदी थी (कहानी संग्रह), 2006। "

Write Your Own Review
You're reviewing:गल्प का यथार्थ कथालोचन के आयाम
Your Rating
कॉपीराइट © 2025 वाणी प्रकाशन पुस्तकें। सर्वाधिकार सुरक्षित।

डिज़ाइन और विकास: Octagon Technologies LLP