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Gandhi Vichar Aur Sahitya

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गाँधीजी के गद्य को देखने से सहज ही अनुभव होता है कि उनका गद्य सहज और बोधगम्य है। वाक्य बड़े और क्लिष्ट नहीं हैं। भाषा सीखने के लिए ऐसे ही गद्य की आवश्यकता है। गाँधीजी ने अपने गद्य में यथार्थ और बीभत्स दृश्यों का भी वर्णन किया है, क्योंकि उनके पास जो मूल तत्त्व था, वह था सत्य। सत्य कहीं भी हो, उसका उसी रूप में चित्रण उस व्यक्तित्व और लेखन का लक्ष्य था।
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9789350001738
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डॉ. सुमन जैन (Dr. Suman Jain)

डॉ. सुमन जैन अनेक पुस्तकों की लेखिका डॉ. समन जैन की महत्वपूर्ण प्रकाशित रचनाएं हैं- आचार्य विनोबा की साहित्य दृष्टि (मध्यकालीन संतों के परिप्रेक्ष्य में) 2006; दलित विमर्श : हिन्दी एवं भारतीय अंग्रेजी साहित्य के संदर्भ में 2006; बदले नज़र नज़ारा बदले (आचार्य शरदकुमार साधक) 2008; सामुदायिक श्री वृद्धि की रचनात्मक पहल 2006; महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ एवं गाँधी जीवन दर्शन 2005; जय जगत की चर्चा-अर्चा 2005; शिक्षा एवं शिक्षकों की रचनाधर्मिता 2001; मूल्यपरक शिक्षा-आचार्य राममूर्ति (पुस्तिका) 2002; छायावादोत्तर हिन्दी कविता के रचनात्मक सरोकार, 2000; हिन्दी विश्व साहित्य कोश खंड-2 (सह-संपादन) 1991-95 आदि। इनके अलावा सामयिक लेख, शोध-पत्र तथा रचना के साथ-साथ पत्र-पत्रिकाओं में अनेक प्रकाशन तथा स्मारिका संपादन। सम्प्रति : रीडर, हिन्दी विभाग, महिला महाविद्यालय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी ई-मेल : tarushikha.agmail.com

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