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गाँधीनामा

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अकबर बीसवीं सदी की शुरुआत में गाँधी, उनके कौमी आन्दोलन और हिन्दू-मुस्लिम एकता के ख़याल के बहुत बड़े कायल बन चुके थे। सरकारी नौकरी में होने के कारण वह गाँधी के आम-फ़हम जन-आन्दोलन में शामिल नहीं हो सकते थे और गाँधी के मुरीदों की बढ़ती हुई तादाद की तुलना कृष्ण की गोपियों से करते थे जिनसे कृष्ण हमेशा घिरे रहते थे। अकबर लिखते हैं : मदखोला गवर्नमेंट अगर अकबर न होता उसको भी आप पाते गाँधी की गोपियों में 1919-21 के बीच लिखी गयी छोटी-छोटी नज़्मों की एक कड़ी अकबर का गाँधीनामा, एकता कायम करने वालों का एक विजयगान है और आज़ादी के लिए एक सियासी आन्दोलन जो सिर्फ हिन्दुओं और मुसलमानों द्वारा बराबर की भूमिका अदा करते हुए चलाया जा सकता था। यह 1946 में उनके पोते, सैयद मुहम्मद मुस्लिम रिज़वी द्वारा एक किताब की शक्ल में शाया करवाया गया था। अपने पाठकों को फ़ारसी क्लासिक शाहनामा की तरह के इस क्लासिक तोप की आला दर्जे की शायरी से दूर रहने के लिए कहते हुए वह अपने गाँधीनामा की शुरुआत इस प्रकार करते हैं : इन्क़लाब आया, नयी दुनिया, नया हंगामा है शाहनामा हो चुका अब दूर गाँधीनामा है अकबर के गाँधीनामा में बहुत कुछ है, जो ठीक सौ साल पहले लिखा गया था और जो आज भी हमारे लिए बहुत मायनेखेज़, फ़ायदेमन्द और प्रासंगिक है।
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9789389915013
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Rakshhanda Jalil (Rakshhanda Jalil)

रख़्शंदा जलील -रख़्शंदा जलील लेखक, अनुवादक, आलोचक और साहित्यिक इतिहासकार हैं। इनके अनेक अनुवाद संकलन, बौद्धिक आलेख व पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। इन्होंने 'प्रोग्रेसिव राइटर्स मूवमेंट एज़ रिफ्लेक्टेड इन उर्दू' पर पीएच.डी. की है जिसे ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस ने प्रकाशित किया है।स्त्रीवादी लेखिका डॉ. रशीद जहाँ की आत्मकथा, प्रेमचन्द, फणीश्वरनाथ ‘रेणु’, शहरयार, कृश्न चन्दर और इन्तिज़ार हुसैन की लघुकथाओं, शायरी और उपन्यासों का अनुवाद किया है। इनका निबन्ध संग्रह 'इनविजिबल सिटी' जोकि दिल्ली के प्रसिद्ध स्मारकों पर आधारित है, पाठकों द्वारा पसन्द किया गया है।आप 2002 से 'हिन्दुस्तानी आवाज़' संस्था चला रही हैं, जो हिन्दी-उर्दू साहित्य एवं संस्कृति को लोकप्रिय बनाने के लिए समर्पित है।

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