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ग़ज़ल दुष्यंत के बाद 3

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ग़ज़ल... दुष्यंत के बाद -3 -
दुष्यंत कुमार ने ग़ज़ल को हिन्दी में प्रतिष्ठित किया और अब 'ग़ज़ल ' हिन्दी साहित्य की एक विधा के नाम से जानी जाती है। दीक्षित दनकौरी के इस सद्प्रयास को दुष्यंत कुमार के प्रति एक विनम्र श्रद्धांजलि भी कहा जा सकता है।  -आर.पी. शर्मा 'महर्षि'
यह संकलन हर जगह सराहा जा रहा है। दीक्षित दनकौरी की लाजवाब कोशिश, बेमिसाल मेहनत और बाकमाल शौक को हर जगह भरपूर दादो-तहसीन से नवाजा जा रहा है।  -मुनव्वर अली 'ताज'
किसी भी एक साहित्यिक विधा विशेष पर इतना बड़ा और प्रमाणिक कार्य सम्भवतः विश्व में कहीं और नहीं हुआ है।  -डॉ. हरीश नवल
"ग़ज़ल ...दुष्यंत के बाद का प्रकाशन एक महाकाव्यात्मक प्रयास है। -डॉ. करुणा शंकर उपाध्याय
'ग़ज़ल ... दुष्यंत के बाद की अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा है। दीक्षित दनकौरी हिन्दी और गुज़ल के प्रचार-प्रसार में सराहनीय कार्य कर रहे हैं। -उषा राजे सक्सेना
उर्दू कोई अलग भाषा नहीं है, बल्कि हिन्दी का ही एक रूप है। हाँ, लिपि ज़रूर अलग है। ग़ज़ल अरबी में पैदा हुई लेकिन दुनिया में कहीं भी इसकी जड़ें इतनी गहरी नहीं गयी जितनी कि हिन्दुस्तान में ग़ज़ल.... दुष्यंत के बाद' का प्रकाशन हिन्दी-ग़ज़ल का टर्निंग पॉइण्ट है। -प्रो. गोपीचन्द नारंग
दीक्षित दनकौरी को इस ऐतिहासिक कार्य के लिए शाबासी मिलनी चाहिए। -'बेकल' उत्साही
हिन्दी-उर्दू को क़रीब लाने में दीक्षित दनकौरी प्रशंसनीय काम कर रहे हैं। वे अपनी रचना की क़ीमत पर ग़ज़ल-विधा और उससे पैदा संस्कृति के प्रचार-प्रसार में समय लगा रहे हैं, यह बड़ी बात है। वे नयी रचनाशीलता को सामने लाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं।
'गज़ल...दुष्यंत के बाद' के सम्पादन कार्य से ग़ज़ल के प्रति उनकी निष्ठा का सहज ही अनुमान हो जाता है। एक सफल ग़ज़लकार के रूप में भी दीक्षित दनकौरी ने देश-विदेश में अपनी रचनात्मक पहचान बनायी है। -कमलेश्वर

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