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गीतांजलि

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"गीतांजलि : सांग ऑफरिंग्स का प्रथम प्रकाशन इंडिया सोसायटी, लंदन से नवम्बर 1912 में हुआ था । मार्च 1913 से इसका प्रकाशन मैकमिलन द्वारा होने लगा। नवम्बर 1913 में इस ग्रन्थ के लिए रवीन्द्रनाथ ठाकुर को नोबेल पुरस्कार प्रदान करने की घोषणा तक इसके दस पुनर्मुद्रण हो चुके थे। तब से देश-विदेश की सभी प्रमुख भाषाओं में गीतांजलि के अनुवाद होते रहे हैं। पिछले सौ वर्षों में गीतांजलि ने पूरे विश्वसमाज को नाना प्रकार से प्रभावित, उद्वेलित किया है। एजष्रा पाउंड ने गीतांजलि के प्रकाशन को अंग्रेजी कविता और विश्वकविता के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण घटना माना । सहज-सरल भाषा-शैली में अभिव्यक्त इसकी गहन अनुभूति ने, प्रकृति-प्रेम, मानव-प्रेम और विश्वसत्ता-प्रेम के इसके सार्वभौम आवेदन ने मानवमन के अन्तर को सहज रूप से स्पर्श किया। तत्कालीन विश्व के युद्धमय परिवेश में इसकी शान्त, स्निग्ध, निर्मल और दीप्त वाणी की जो उपयोगिता थी वह आज भी बनी हुई है और इसलिए गीतांजलि के नये-नये अनुवाद अब भी प्रकाशित हो रहे हैं। गीतांजलि के प्रकाशन के शताब्दी वर्ष में प्रस्तुत यह हिन्दी अनुवाद अंग्रेजी गीतांजलि की मूल बांग्ला कविताओं के आधार पर किया गया है। देवनागरी में मूल बांग्ला कविताओं, उनके हिन्दी अनुवाद और साथ में रवीन्द्र-कृत अंग्रेजी अनुवाद को एक साथ प्रकाशित किया जा रहा है जिससे पाठकों के समक्ष गीतांजलि अपने सम्पूर्ण वैशिष्ट्य के साथ उपस्थित हो सके। शकुन्तला मिश्र ने अपने हिन्दी अनुवाद में गीतांजलि की मूल बांग्ला कविताओं के सम्पूर्ण भाव को यथारूप प्रस्तुत करने का सराहनीय प्रयास किया है। "
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9789350725412
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रवीन्द्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore)

"रवीन्द्रनाथ टैगोर - रवीन्द्रनाथ टैगोर का जन्मं 7 मई, सन् 1861 को कोलकाता में हुआ था। रवीन्द्रनाथ टैगोर एक कवि, उपन्या सकार, नाटककार, चित्रकार, और दार्शनिक थे। रवीन्द्रनाथ टैगोर एशिया के प्रथम व्यपक्ति थे जिन्हें नोबल पुरस्काकर से सम्मा नित किया गया था। वे अपने माता-पिता की तेरहवीं सन्तान थे। बचपन में उन्हेंै प्यायर से 'रबी' पुकारा जाता था। आठ वर्ष की उम्र में उन्होंैने अपनी पहली कविता लिखी, सोलह साल की उम्र में उन्होंरने कहानियाँ और नाटक लिखना प्रारम्भ कर दिया था। अपने जीवन में उन्हों ने एक हज़ार कविताएँ, आठ उपन्याोस, आठ कहानी संग्रह और विभिन्नह विषयों पर अनेक लेख लिखे। इतना ही नहीं रवीन्द्रनाथ टैगोर संगीत प्रेमी थे और उन्होंकने अपने जीवन में 2000 से अधिक गीतों की रचना की। उनके लिखे दो गीत आज भारत और बांग्लानदेश के राष्ट्र गान हैं। टैगोर केवल महान रचनाधर्मी ही नहीं थे, बल्कि वे पहले ऐसे इन्सान थे जिन्होंने पूर्वी और पश्चिमी दुनिया के मध्य सेतु बनने का कार्य किया था। टैगोर केवल भारत के ही नहीं बल्कि समूचे विश्व‍ के साहित्या, कला और संगीत के एक महान प्रकाश स्तम्भ हैं, जो अनन्तकाल तक प्रकाशमान रहेगा। "

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