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Vani Prakashan
गीतिमाला
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9788181432292
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गीतिमाला -
हिन्दी साहित्य में गीतात्मकता की बड़ी समृद्ध परंपरा है। जिस प्रकार प्रभात की सुनहरी किरण को छूकर पक्षी आनन्द से चहचहा उठता है और बादलों को घुमड़ता देखकर मोर नाच उठता है, उसी प्रकार मनुष्य भी अपने भावों को नाच गाकर ही प्रकट करता है। स्वर सामंजस्य में बंधा हुआ गेय काव्य मनुष्य- हृदय के कितना निकट है, उस समय के संगीतज्ञ-कवियों को भली-भांति ज्ञात था। रामविलास जी की संगीत में गहरी रुचि थी, खास तौर से शास्त्रीय और लोक संगीत में। साहित्यकार के रूप में भी वह कवि पहले थे, आलोचक बाद में। प्राचीन और मध्यकालीन कवियों की कल्पनाएं, उनकी उपमाओं का अनूठापन और भक्ति चातुरी उन्हें विशेष प्रिय थीं। पाठकों को हिन्दी की काव्य परंपरा से परिचित कराने के लिए उन्होंने गीतिमाला का संकलन किया था।
ISBN
9788181432292
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Vani Prakashan
Publication | Vani Prakashan |
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