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गीतिमाला

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गीतिमाला - 
हिन्दी साहित्य में गीतात्मकता की बड़ी समृद्ध परंपरा है। जिस प्रकार प्रभात की सुनहरी किरण को छूकर पक्षी आनन्द से चहचहा उठता है और बादलों को घुमड़ता देखकर मोर नाच उठता है, उसी प्रकार मनुष्य भी अपने भावों को नाच गाकर ही प्रकट करता है। स्वर सामंजस्य में बंधा हुआ गेय काव्य मनुष्य- हृदय के कितना निकट है, उस समय के संगीतज्ञ-कवियों को भली-भांति ज्ञात था। रामविलास जी की संगीत में गहरी रुचि थी, खास तौर से शास्त्रीय और लोक संगीत में। साहित्यकार के रूप में भी वह कवि पहले थे, आलोचक बाद में। प्राचीन और मध्यकालीन कवियों की कल्पनाएं, उनकी उपमाओं का अनूठापन और भक्ति चातुरी उन्हें विशेष प्रिय थीं। पाठकों को हिन्दी की काव्य परंपरा से परिचित कराने के लिए उन्होंने गीतिमाला का संकलन किया था।        

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9788181432292
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Vani Prakashan
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रामविलास शर्मा (Ramvilas Sharma)

रामविलास शर्मा

जन्म : 10 अक्टूबर, 1912; ग्राम—ऊँचगाँव सानी, ज़िला—उन्नाव (उत्तर प्रदेश)।

शिक्षा : 1932 में बी.ए., 1934 में एम.ए. (अंग्रेज़ी), 1938 में पीएच.डी. (लखनऊ विश्वविद्यालय)।

लखनऊ विश्वविद्यालय के अंग्रेज़ी विभाग में पाँच वर्ष तक अध्यापन-कार्य किया। सन् 1943 से 1971 तक आगरा के बलवन्त राजपूत कॉलेज में अंग्रेज़ी विभाग के अध्यक्ष रहे। बाद में आगरा विश्वविद्यालय के कुलपति के अनुरोध पर के.एम. हिन्दी संस्थान के निदेशक का कार्यभार स्वीकार किया और 1974 में अवकाश लिया।

सन् 1949 से 1953 तक रामविलासजी अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के महामंत्री रहे।

देशभक्ति तथा मार्क्‍सवादी चेतना रामविलास जी की आलोचना का केन्द्र-बिन्दु हैं। उनकी लेखनी से वाल्मीकि तथा कालिदास से लेकर मुक्तिबोध तक की रचनाओं का मूल्यांकन प्रगतिवादी चेतना के आधार पर हुआ। उन्हें न केवल प्रगति-विरोधी हिन्दी-आलोचना की कला एवं साहित्य-विषयक भ्रान्तियों के निवारण का श्रेय है, वरन् स्वयं प्रगतिवादी आलोचना द्वारा उत्पन्न अन्तर्विरोधों के उन्मूलन का गौरव भी प्राप्त है।

सम्मान : ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ तथा हिन्दी अकादेमी, दिल्ली का ‘शताब्दी सम्मान’।

निधन : 30 मई, 2000

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