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Vani Prakashan
घर अकेला हो गया
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9788181439789
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"मुनव्वर राना एक दुखी आत्मा का नाम है जबकि लोगों को उसकी ज़िन्दगी में बड़ी चमक दिखायी देती है। कलकत्ते और दिल्ली से पूरे मुल्क में फैला हुआ उसका कारोबार; हवाई जहाजों, रेल के एयर कण्डिशण्ड डिब्बों और चमकती हुई कारों में उसका सफ़र, सितारों वाले होटलों में उसका क्रयाम, उसका सुखी घर-संसार, जहाँ उसकी जीवन-संगिनी, हँसती हुई गुड़ियों जैसी बच्चियों और किलकारियाँ भरते हुए फूल जैसे मासूम और चाँद जैसे प्यारे बेटे के अलावा जिन्दगी को आराम-ओ-आसाइश से गुजारने के लिए नये-से नया और अच्छे-से-अच्छा सामान मौजूद है, लेकिन उसका सबसे बड़ा दुख गाँव से नाता टूट जाने का है। यह और ऐसे ही बहुत-से दुख उसे सताते हैं !
बहुत ज़माना हुआ, गौतम ने इन्हीं दुखों से छुटकारा पाने के लिए संसार को त्याग दिया था, लेकिन मुनव्वर राना का दुख यह है कि वह रात के अँधेरे में छुप कर कहीं जा नहीं सका, वह संसार को त्याग भी नहीं सका, शायद यही वजह है कि उसने शायरी के दामन में पनाह ढूँढ़ ली और अपने दुखों को इस तरह हिफ़ाज़त के साथ रक्खा जैसे औरतें अपने गहने सँभाल कर रखती हैं।
- वाली आसी
"
ISBN
9788181439789
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Vani Prakashan
Publication | Vani Prakashan |
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