हर दिल में, हर आँख में, स्वप्नों का, आदर्शों का और आने वाली ऋतुओं के सौरभ का एक गाँव बसता है। मुनव्वर राना ने अपनी उद्दीप्त कल्पनाओं में जो बस्ती बसा रक्खी है, उसका नाम है "ग़ज़ल गाँव!' राना इस बस्ती का बाँका भी है और इसका बाँसुरी बजैया भी ! ‘ग़ज़ल गाँव' की भोर और गोधूलि, दोनों बेलाओं में उसकी अनुभूतियों की बहुरंगी छायाएं लहराती हैं। राना के बाँकपन में सन्तों जैसी उदारता और मानवीय दुखों का गहरा बोध भी शामिल है। यह बाँकपन और उदारता, दोनों उसकी जन्म भूमि की परम्पराएँ हैं। शहीदों, कवियों और भक्तों की धरती रायबरेली, जहाँ से उठे थे मलिक मुहम्मद जायसी और उर्दू के उत्कृष्ट काव्यालोचक- अब्दुल हई - 'तज़करा-ए-गुलेराना' के लेखक। इसी मिट्टी के हवाले उसे चिन्तन की शक्ति भी मिली है और अपने अन्तर्मन को अभिव्यक्त करने का हौसला भी ।
मुनव्वर राना -
जन्म : 26 नवम्बर 1952 को रायबरेली, उत्तर प्रदेश में।
शिक्षा : बी. कॉम ।
पुस्तकें : ग़ज़ल गाँव, पीपल छाँव, मोर पाँव,
अकेला हो गया, माँ, बदन सराय, सुख़न सराय, मुहाजिरनामा, शहदाबा तथा मुनव्वर राना की सौ ग़ज़लें (सभी शायरी की पुस्तकें); मीर आ के लौट गया (आत्मकथा); बगैर नक़्शे का मकान, सफ़ेद जंगली कबूतर, फुन्नकताल तथा ढलान से उतरते हुए (सभी संस्मरण पुस्तकें) ।
कई पुस्तकों का बाँग्ला तथा अन्य भाषाओं में अनुवाद ।
देश-विदेश की अनेक साहित्यिक यात्राएँ।
सम्पर्क : 10-सी, बोलाई दत्त स्ट्रीट, कोलकाता-700073
देहावसान : 14 जनवरी 2024