गोह - 'गोहो' एक ऐसे मासूम बच्चे की कथा है, जो बेहद अकेला है और हर वक़्त किसी मित्र की तलाश में जुटा रहता है। माँ अपने निजी जीवन में व्यस्त, अपने बेटे का स्वभाव और अस्वाभाविक तलाश देख कर, मन ही मन कहीं हैरान है। उसे अपना बेटा बेहद अस्वाभाविक लगता है। अपने किसी काम से, जब वह कुछ दिनों के लिए दिल्ली जाती है, उसकी अनुपस्थिति में बच्चे का पिता ही, उसका परम मित्र बन जाता है। मगर माँ के लौटते ही, बच्चा फिर अकेला हो जाता है, क्योंकि, माँ-बाप फिर अपनी-अपनी दुनिया में व्यस्त हो जाते हैं। बच्चे 'गोह' की कल्पना, अचानक स्नानघर की दीवारों पर पड़ी पानी की बूँदों तरह-तरह की आकृतियों में, किसी एक के बजाय, ढेरों मित्र खोज लेती है। अब, वे विभिन्न आकृतियाँ उसकी परम मित्र बन जाती हैं। अब, वह उनसे ही अपने मन की बातें कहता सुनता है। उसके साथ खेलता है। उसकी कल्पना में वे आकृतियाँ, उसका अकेलापन भर देती हैं। विविध क्षेत्रों की अलग-अलग तस्वीर पेश करती हुई, महाश्वेता की सशक्त लेखनी, लेखन-कर्म की प्रतिबद्धता को उजागर करती है।
बांग्ला की प्रख्यात लेखिका महाश्वेता देवी का जन्म 1926 में ढाका में हुआ। वह वर्षों बिहार और बंगाल के घने कबाइली इलाकों में रही हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं में इन क्षेत्रों के अनुभव को अत्यन्त प्रामाणिकता के साथ उभारा है।महाश्वेता देवी एक थीम से दूसरी थीम के बीच भटकती नहीं हैं। उनका विशिष्ट क्षेत्र है-दलितों और साधन-हीनों के हृदयहीन शोषण का चित्रण और इसी संदेश को वे बार-बार सही जगह पहुँचाना चाहती हैं ताकि अनन्त काल से गरीबी-रेखा से नीचे साँस लेनेवाली विराट मानवता के बारे में लोगों को सचेत कर सकें। गैर-व्यावसायिक पत्रों में छपने के बावजूद उनके पाठकों की संख्या बहुत बड़ी है। उन्हें साहित्य अकादेमी, ज्ञानपीठ पुरस्कार व मैग्सेसे पुरस्कार समेत अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।