गोम्मटेश्वर बाहुबली
गोम्मटेश्वर बाहुबली
बाहुबली के विराट व्यक्तित्व पर अपनी लेखनी चलाते बार बार लगा अहिंसा के प्रथम उद्घोष प्रथम केवलज्ञानी, प्रथम तीर्थकर आदिनाथ ऋषभदेव के पुत्र अपने भ्राता द्वारा पूजित त्याग की पराकाष्ठा बाहुबली को छवि माँ काललदेवों के मनप्राण में घर कर गई थी. इसमें कोई आश्चर्य नहीं क्योंकि बाहुबली हैं ही अनूठे अद्भुत अनासक्त। किन्तु कदाचित् मातृ प्रेम का भी अन्य ऐसा उदाहरण संसार में ढूँढ़े नहीं मिलेगा जहाँ पुत्र माँ के व्रत के उद्यापन के लिए सारा राजसुख त्याग श्रवणबेलगोल के चन्द्रगिरि पर सपरिवार आ बसे और सामने स्थित विन्ध्यगिरि पर बाहुबली की मूर्ति को साकार कर दे। वहीं महामस्तकाभिषेक के अवसर पर मिथ्याभिमान और अहंकार के जागते ही गुल्लकाय अजी का रूप धरकर अधिष्ठात्री देवी माँ कुष्माण्डिनी का आना और चामुण्डराय का मान मर्दन करना, आचार्य गुरु के चरणों में चामुण्डराय का गिरना और बहुत से प्रकरण लिखते हुए मुझे अत्यन्त गौरव की अनुभूति हुई कि आदिनाथ ऋषभदेव ने ब्राह्मी सुन्दरी (उनकी पुत्रियाँ) को शिक्षित किया, पारंगत किया और उनको स्वावलम्बी बनकर शिल्प कला के प्रचार प्रसार के लिए चुना। उनके सौ पुत्र थे पुत्रों को उन्होंने शस्त्र विद्या एवं अन्य विद्याएँ सिखायी। किन्तु लिपि, अंक एवं शिल्प जैसी विद्याएँ अपनी पुत्रियों के माध्यम से जन-जन में पहुंचायी। बहनों का भाइयों से प्रेम, बाहुबली की समाधि अवस्था में लताओं और सर्प तथा दीमक की बाँबियों से ढँका देखकर उनका दुखी होना और भाव विह्वल होकर लताओं और बाँबियों को हटाना, यशस्वती और सुनन्दा (आदिनाथ ऋषभदेव की पत्नियाँ) का भरत और बाहुबली का युद्ध रोकने के उपाय तलाशना, काललदेवी का व्रत धारण करना, गुल्लिका अग्नी द्वारा बाहुबली का अभिषेक होना जैन विचारधारा में स्त्री के महत्त्वपूर्ण, सकारात्मक एवं विशिष्ट स्थान को अभिव्यक्त करता है। यही सोचकर कदाचित् स्वामी श्री चारुकीर्ति जी ने फरवरी, 2018 में होने वाले महामस्तकाभिषेक के पोस्टर एवं अन्य प्रचार सामग्री में बाहुबली के गुल्लिका अज्जी द्वारा किये गए प्रथम अभिषेक का चित्र लिया है। स्वामी जी को दूरगामी दृष्टि एवं समानताभावी विचार शक्ति का इससे परिचय मिलता है।
मुझे सन् 1993 में पहली बार श्रवणबेलगोल जाने का सौभाग्य मिला तव महामस्ताभिषेक का ही सुअवसर था। महिला सम्मेलन में बाहुबली जी के अनुपम चारित्र को समेटे हुए मैंने अपनी एक कविता प्रस्तुत की थी। मेरी सासू माँ स्मृतिशेष श्रीमती शान्तिदेवीजी जैन को धार्मिक आस्था के कारण सपरिवार हम लगभग 25-30 जन श्रवणबेलगोल गये थे। बाहुबली को विराटता तबसे मन मस्तिष्क पर अंकित होकर रह गयी।
अगस्त सन् 2017 में पुनः विदूषी महिला सम्मेलन में भाग लेने श्रवणबेलगोल जाने का अवसर मिला वही से पुस्तक लिखने का विचार बना और इसके अँग्रेजी अनुवाद के लिए मैंने अखिलेश जी से चर्चा की। उन्होंने सहर्ष अनुवाद करने के लिए अपनी सहमति दे दी। अखिलेश जी के द्वारा अँग्रेजी अनुवाद करने से यह पुस्तक दोनों भाषाओं में आ सकी है उनका विशेष आभार एवं साधुवाद ।
भारतीय ज्ञानपीठ, चित्रकार मनोज पंडित, चन्द्रकान्त शर्मा और राजेन्द्र जैन 'महावीर', का आभार जिनके कारण यह पुस्तक और अधिक प्रशस्त हो सकी है।
सुधि पाठकों को बाहुबली के अहिंसा, त्याग, प्रेम, मैत्री बन्धुत्व भाव से भरे निश्छल निर्मल अनुकरणीय जीवन चरित्र को अपनी तुच्छ लेखनी से बाँधकर इस आशा और विश्वास के साथ सौंप रही हूँ कि मुझसे कहीं कोई त्रुटि या अवमानना हुई होगी तो वे अवश्य क्षमा कर देंगे।
"तम गोम्मटेशं पणमामि णिच्चं"
- प्रभाकिरण जैन'
Publication | Bharatiya Jnanpith |
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